सोमवार, 30 अप्रैल 2012

दर्द का व्यापार

दर्द का व्यापार
दे  ही देते हम उसे
जो ले कभी हम से उधार
जिंदगी एक दर्द है
कर ही  ले इस का व्यापार
बदगुमानी थी बहुत
कि याद उनको आयेंगे
रास्ते जो गये बिछड़
किसी मोड़ पर टकरायेंगे
नफरतों के झाड़ थे
कैसे भला उगता यह प्यार
शुष्क था दिल का समुंदर
अब भला कैसा ज्वार ?
कंठ है अवरुद्ध  ज्यों
भावना के इश्तहार  
नीर जो  बहते नयन से
दर्द को जाते पखार
बिक ही जाए यह कभी
अब नकद याँ  कल उधार
चार दिन की जिंदगी में
दर्द भी कब है बेकार ?