रविवार, 8 अप्रैल 2012

चुनौती


चुनौती 

कहता जीवन मरना छोड़ो 
अपने आप को छलना छोड़ो 
सांस की आस में धुयाँ हुआ  जो 
उन अनलों में तपना छोड़ो 
कहता जीवन व्यथा है कैसी 
चलती धारा कथा के जैसी 
हर इक अंक का अंत है निश्चित 
रंग मंच के मंचन जैसी 
जीवन का यह  राग पुराना 
गुंजित होता हर लम्हे पर 
चेतावनिया देता रहता यूं 
भूली  धुन का नया तराना 
कहता जीवन जी लो मुझको  
 स्वाति बूँद सा पी लो मुझ को 
पल पल प्रतिपल जो  हुआ असंभव  
 हो अजय तो जीतो मुझको