चुनौती
अपने आप को छलना छोड़ो
सांस की आस में धुयाँ हुआ जो
उन अनलों में तपना छोड़ो
कहता जीवन व्यथा है कैसी
चलती धारा कथा के जैसी
हर इक अंक का अंत है निश्चित
रंग मंच के मंचन जैसी
जीवन का यह राग पुराना
गुंजित होता हर लम्हे पर
चेतावनिया देता रहता यूं
भूली धुन का नया तराना
कहता जीवन जी लो मुझको
स्वाति बूँद सा पी लो मुझ को
पल पल प्रतिपल जो हुआ असंभव
हो अजय तो जीतो मुझको