लगता है जैसे कल की बात हो
उन्नत माथे पर चमकता सिंदूर , आत्म गौरव से दपदप दमकता मुख..जैसे सूरज के तेज़ भी मद्धम से पड़ने लगा हो, बंद आखो से छलकते वात्सल्य के स्त्रोत और गुलाब की कली से बंद लब जैसे मौन आशीर्वचनो की झड़ी लगा रहे हो ..आखिरी वक्त का यह दर्शन आज भी आखो के बंद दीपों में झिलमिलाता है किसी दिवा स्वप्पन की तरह .
मैं उन दिनों DISA के एक्साम के तैयारी में व्यस्त थी. . रोज़ कहती थी बस खूब पढो ..और बबुत बड़े बनो .. आज उनका स्वप्पन पूरा हुआ जैसे.
शायद मैं उनकी आँखों में बसे उस सपने को जो उन्हों ने मेरे लिए देखा था आज पूरा करने में कामयाब हो पायी .दस बरस पूर्व मेरे जुड़वाँ बच्चो के कारन मैंने अपने ऑफिस में इस्तीफ़ा दिया था तो सब से ज्यादा व्यथित उन्ही को देखा था . बड़ी दबी आवाज़ में उन्होंने मेरे पिताजी से कहा की इतनी होशिआर बच्ची ...पता नहीं अब कभी उभर भी पायेगी की नहीं........२००५ में में फिर से अपने करीअर पर ध्यान देना शुरू किया और POST QUALICATION COURSE पास किया. इसी बीच उनका अचानक देहावसान हुआ. लेकिन मुझ पर तो जैसे एक ही धुन सवार थी. अपने आप को उस जगह पहुचाना जहा मेरी माँ ने मेरे होने की कल्पना की थी. एक स्वप्पन मेरे लिए उनकी आँखों में था . मुझे परेशान देख कर बस यही कहती थी "मुन्नी तू बहुत संतोष वाली लड़की है .तुझे भगवान् ने बहुत देना है" आज उनके आशर्वाद का परिणाम है की में अपनी उस मंजिल पर चरण रख पायी हूँ जिसकी जीते जी मेरी माँ ने कल्पना की थी.
उनके जाने के ६ वर्षों बाद में उनका सपना साकार क्र पायी .
खुश तो वह अवश्य होंगी जहा भी होंगी.........और आज उनके जाने के ६ वर्ष बाद ही मेरे आँख से आंसू उनकी याद में आखो से ढुलक रहे है जो उनके वात्सल्य को पुकारते उनको श्रधान्जली दे रहे है ..............माँ तुम मेरा जीवन आधार हो हमेशा मेरे साथ थी और मेरे साथ रहोगी...
चरणस्पर्श .....
उन्नत माथे पर चमकता सिंदूर , आत्म गौरव से दपदप दमकता मुख..जैसे सूरज के तेज़ भी मद्धम से पड़ने लगा हो, बंद आखो से छलकते वात्सल्य के स्त्रोत और गुलाब की कली से बंद लब जैसे मौन आशीर्वचनो की झड़ी लगा रहे हो ..आखिरी वक्त का यह दर्शन आज भी आखो के बंद दीपों में झिलमिलाता है किसी दिवा स्वप्पन की तरह .
मैं उन दिनों DISA के एक्साम के तैयारी में व्यस्त थी. . रोज़ कहती थी बस खूब पढो ..और बबुत बड़े बनो .. आज उनका स्वप्पन पूरा हुआ जैसे.
शायद मैं उनकी आँखों में बसे उस सपने को जो उन्हों ने मेरे लिए देखा था आज पूरा करने में कामयाब हो पायी .दस बरस पूर्व मेरे जुड़वाँ बच्चो के कारन मैंने अपने ऑफिस में इस्तीफ़ा दिया था तो सब से ज्यादा व्यथित उन्ही को देखा था . बड़ी दबी आवाज़ में उन्होंने मेरे पिताजी से कहा की इतनी होशिआर बच्ची ...पता नहीं अब कभी उभर भी पायेगी की नहीं........२००५ में में फिर से अपने करीअर पर ध्यान देना शुरू किया और POST QUALICATION COURSE पास किया. इसी बीच उनका अचानक देहावसान हुआ. लेकिन मुझ पर तो जैसे एक ही धुन सवार थी. अपने आप को उस जगह पहुचाना जहा मेरी माँ ने मेरे होने की कल्पना की थी. एक स्वप्पन मेरे लिए उनकी आँखों में था . मुझे परेशान देख कर बस यही कहती थी "मुन्नी तू बहुत संतोष वाली लड़की है .तुझे भगवान् ने बहुत देना है" आज उनके आशर्वाद का परिणाम है की में अपनी उस मंजिल पर चरण रख पायी हूँ जिसकी जीते जी मेरी माँ ने कल्पना की थी.
उनके जाने के ६ वर्षों बाद में उनका सपना साकार क्र पायी .
खुश तो वह अवश्य होंगी जहा भी होंगी.........और आज उनके जाने के ६ वर्ष बाद ही मेरे आँख से आंसू उनकी याद में आखो से ढुलक रहे है जो उनके वात्सल्य को पुकारते उनको श्रधान्जली दे रहे है ..............माँ तुम मेरा जीवन आधार हो हमेशा मेरे साथ थी और मेरे साथ रहोगी...
चरणस्पर्श .....