और तेरा वजूद
कभी साथ हमको ना मिला
कभी छल किया मुकद्दर ने
हर मोड़ पर था तम पडाव
ता उम्र जिंदगी छलती रही
मिला जो अब कभी तू तो
सोचा कह ही डालेंगे
वो अलफ़ाज़ जिसकी रूह
मेरे साथ गुनगुनाती रही
रूक जाते कभी यह पग
चल कर दो -चार कदम
अनुभूति तेरी अस्मित की
मेरे साथ जगमगाती रही
जाने कौन सा लम्हा
मुझे तुम तक मिलाता है
भावित सुरभियाँ मन की
मेरे साथ मुस्कुराती रही
कभी साथ हमको ना मिला
कभी छल किया मुकद्दर ने
हर मोड़ पर था तम पडाव
ता उम्र जिंदगी छलती रही
मिला जो अब कभी तू तो
सोचा कह ही डालेंगे
वो अलफ़ाज़ जिसकी रूह
मेरे साथ गुनगुनाती रही
रूक जाते कभी यह पग
चल कर दो -चार कदम
अनुभूति तेरी अस्मित की
मेरे साथ जगमगाती रही
जाने कौन सा लम्हा
मुझे तुम तक मिलाता है
भावित सुरभियाँ मन की
मेरे साथ मुस्कुराती रही