खिन्नता
सदियों से उसे यूं ही बुलाता रहा मैं
जो पास छिपा बैठा था दिल के दरीचों में
आया था कभी जीवन में जो बन के मसीहा
अब रोज़ शिकस्त जान को देने सा लगा है
नावाकिफ रहता था जो रस्मो रिवाजों से
जालिम है हर रस्म निभाता है जतन से
मिट जायेंगे सब ख़ाक में यादों के घरोंदे
रेत के महलों के कभी गुम्मद नहीं होते
सदियों से उसे यूं ही बुलाता रहा मैं
जो पास छिपा बैठा था दिल के दरीचों में
आया था कभी जीवन में जो बन के मसीहा
अब रोज़ शिकस्त जान को देने सा लगा है
नावाकिफ रहता था जो रस्मो रिवाजों से
जालिम है हर रस्म निभाता है जतन से
मिट जायेंगे सब ख़ाक में यादों के घरोंदे
रेत के महलों के कभी गुम्मद नहीं होते