उजले लोग
उजालों में जो भटके हैं
अंधेरों से अब डरते हैं
मिले थे कल वो साए से
अब परछाईं से बचते हैं
किये थे दफ़न दस्तावेज़
सितमगर के गुनाहों के
जड़े ताबूत में कीलें अब
मागें हक़ पनाहों के
पुती कालिख स्याही की
नकाब पोशी सफ़ेदी की
शहंशाह जुल्म के बन कर
कहलातें है उजले लोग