रविवार, 22 अप्रैल 2012

माँ का जाना ( माँ की पुण्य स्मृति में )
 जान  चुका  मन जिसको अपना
देखो !आज हुआ बेगाना
वक्त ने जैसे तेवर बदले
पिघल उठा  मन का  वीराना
मुस्काता इतराता पतझर
रुष्ट हुआ मधुमास बहार
फूलो की मधरिम शैया पर
शूलो की  उन्मुक्त कतार
सागर का अंतस अब सूखा
नीरद का अस्तित्व है रूखा
मरू के रेतीले टीलों  पर
मन बना कंटीला झाड अबूझा
दिया दर्द का पीर की बाती
जले मनमंदिर में दिन और राती
सूनी आँखे गमन निहारे
हर अश्रु तेरा नाम पुकारे
बिलख बिलख कर रोता रोदन
करता है तेरा अनुमोदन
हुआ श्वास से वंचित जब तन
वैकुण्ठ में निवस गया मन
तुम बिन जीवन निष्ठुर है मां
क्रुद्ध विरोध जलन की ज्वाला
आँचल के तेरे आज भी छईया
पीयूष करे जीवन की  हाला