भूल गये मेरा ही नाम
करते थे तुम मुझसे बातें
जागे कितनी काटी रातें
हर पल सुमनों का मेला सा
फैले सौरभ एक रेला सा
यादों की पीड़ा से ग्रसते
हर लम्हे में बस तुम बसते
नियति ने कैसा चक्र चलाया
दूर तुम्हे मैंने नित पाया
खो बैठे तुम सारे धाम
भूल गये मेरा ही नाम