शनिवार, 19 मई 2012

प्रत्याशी

प्रत्याशी
 
बुझी बुझी है चांदनी
बुझा बुझा सा है गगन
बुझ गयी वसुंधरा
बुझा बुझा सा है चमन
छूट चले मीत सभी
रूठ चले गीत  सभी
वेदना के द्वार खुले
झूठ चले रीत सभी
तप्त वारिधि पवन 
मौन धारिणी अयन 
द्रवित वेदना प्रलय 
विस्तृत हुआ संशय 
टूटी श्रधा औ विश्वास 
सुप्त हुई मन की आस 
मित्र ,मित्रता के नाम 
देखे घातक परिणाम 
छोड़ दें यह विश्व सारा 
छूटे भले ही सहारा 
मन स्वयं अभिलाषी 
बने अपना प्रत्याशी