प्रत्याशी
बुझी बुझी है चांदनी
बुझा बुझा सा है गगन
बुझ गयी वसुंधरा
बुझा बुझा सा है चमन
छूट चले मीत सभी
रूठ चले गीत सभी
वेदना के द्वार खुले
झूठ चले रीत सभी
तप्त वारिधि पवन
मौन धारिणी अयन
द्रवित वेदना प्रलय
विस्तृत हुआ संशय
टूटी श्रधा औ विश्वास
सुप्त हुई मन की आस
मित्र ,मित्रता के नाम
देखे घातक परिणाम
छोड़ दें यह विश्व सारा
छूटे भले ही सहारा
मन स्वयं अभिलाषी
बने अपना प्रत्याशी