मंगलवार, 3 जनवरी 2012

दर्शन ..ठाकुर का

दर्शन ..ठाकुर का
जल तरंग से उठते गीतों ने
तुम को आज पुकारा फिर है
आँखों के चमकीले दर्पण में
तुम को आज निहारा फिर है
सोचा थोडा रूक जायूं
वक़्त से पहले थम जाऊं
मदमाती इस मस्त हवा में
थोडा और मैं रम जाऊं
कमल नयन सांवल छवि तेरी
भर लूं आँचल में  अपने मैं
जी उठी  अभिलाषा  जीने की
जी लूं थोडा जी  भर कर मैं
रूकने को तो मैं रूक जाता
थोडा चैन कहीं तो पाता
वक्त के दामन में जो जकड़ा
पर क्या ऐसा  कर पाता मैं ?
किंकिन सुंदर नुपुर धवनि सुन
पावों में  थिरकन जागी थी
चिर कालो से विक्षिप्त तंत्रा
साथ छोड़ पल में भागी थी
वक़्त बुरा था याँ था अच्छा
जैसा भी था तुझे समर्पित
अर्चन कर जोड़े फिर करता
सर्वस्व मेरा हो तुम को अर्पित