इंतज़ार
सपना सजाया मैंने जाने कितनी बार
निष्ठुर जोगी तुम ना आए एक बार
राहों में जूही के सुमन बिछाए
दिनकर की किरणों से रौशन कराये
पलकों से पंथ बुहारा कई बार
रात की मांग मैंने चंदा से सजाई
झिलमिल तारों की चूनर ओढाई
घुंघटा ना खोला ना निहारा एक बार
निश्छल प्रेम की मैंने भसम रमाई
क्यों नहीं तुमने मेरी सुधि पायी
जनम जनम तेरा करूं इंतज़ार
सपना सजाया मैंने जाने कितनी बार
निष्ठुर जोगी तुम ना आए एक बार
राहों में जूही के सुमन बिछाए
दिनकर की किरणों से रौशन कराये
पलकों से पंथ बुहारा कई बार
रात की मांग मैंने चंदा से सजाई
झिलमिल तारों की चूनर ओढाई
घुंघटा ना खोला ना निहारा एक बार
निश्छल प्रेम की मैंने भसम रमाई
क्यों नहीं तुमने मेरी सुधि पायी
जनम जनम तेरा करूं इंतज़ार