गुरुवार, 11 नवंबर 2010

Satta ka upbhog

सत्ता का उपभोग

मौन शब्द
हुए स्तब्ध
देख सत्ता
का प्रारब्ध

धन लोलुपता
काम भ्रष्टता
शर्मसार हुई
कर्म महत्ता

शक्ति सुयोग
हुआ दुरप्रयोग
वाह रे रक्षक
कैसा नियोग?