मंगलवार, 9 नवंबर 2010

tumhaari aawaaz

तुम्हारी  आवाज़

जैसे दूर पहाड़ी के पीछे
       बजती वंशी की मीठी धुन
याँ फिर कमलन दल पर डोलते
        मंडराते भ्रमरों की गुन-गुन
जैसे साग़र के सीने से उठे
           तरंगों का कोई शोर
याँ फिर नभ में घिरी घटा को
      देख कर बोल कोई मोर
जैसे झरनों की झर-झर से
          निकला हुआ कोई संगीत
याँ फिर सनन सनन हवाओं का
           बजता हुआ कोई गीत
जिसको सुन कर किसी का  भी 
           दिल   हो जाये बेकाबू
ऐसा है  तुम्हारी
            सुरमई  आवाज़ का जादू