तुम्हारी आवाज़
जैसे दूर पहाड़ी के पीछे
बजती वंशी की मीठी धुन
याँ फिर कमलन दल पर डोलते
मंडराते भ्रमरों की गुन-गुन
जैसे साग़र के सीने से उठे
तरंगों का कोई शोर
याँ फिर नभ में घिरी घटा को
देख कर बोल कोई मोर
जैसे झरनों की झर-झर से
निकला हुआ कोई संगीत
याँ फिर सनन सनन हवाओं का
बजता हुआ कोई गीत
जिसको सुन कर किसी का भी
दिल हो जाये बेकाबू
ऐसा है तुम्हारी
सुरमई आवाज़ का जादू