बस एक ही पल में
वोह एक पराया सा, हो गया अपना, बस एक ही पल में
वोह एक साया था ,जो खो गया मुझ में ,बस एक ही पल में
बजता रहा चार सु किसी साज़ सा
पर छुपा रहा वोह किसी राज सा
हर जगह उसका बिखरा था एहसास
चाह लिए मिलन की एक अनबुझ प्यास
वोह एक बेगाना, कर गया दीवाना , बस एक ही पल में
वोह एक अनजाना , बन गया परवाना , बस एक ही पल में
आने लगा वह सहज मीठी याद सा
खामोशिओं में एक मधु आवाज़ सा
जल रहा है दीप बन किसी देहरी का
मस्त फक्कड़ पीर की मज़ार सा
वोह एक ख्वाब , बन गया नयनाभ , बस एक ही पल में
वोह एक सुआभ , बन गया श्वास , बस एक ही पल में