बेटी की विदाई
अंगना में बाजे शहनाई
कल तक थी जो मेरी साँसे
हुई वह आज पराई
अंगना मैं बाजे शहनाई
दुल्हन का श्रींगार रचा कर
तारों से मांग सजा कर
आशीष दे कर भर- भर झोली
करूं मैं उसकी विदाई
अंगना मैं बाजे शहनाई
खुशियों की बरात है आयी
फूलो की सौगात है लाई
देख चन्द्र विधु की झांकी
हुई मैं आज सौदाई
अंगना मैं बाजे शहनाई
बेटी तो है अनमोल खजाना
विदा हुई तो दर्द यह जाना
संचित कर के बाबुल अंगना
पिया घर जा कर समाई
अंगना मैं बाजे शहनाई
आशंकित मन क्यों घबराए
पिया घर जा कर सब सुख पाए
ठाकुरजी से लेत बलैयां
आँख मेरी क्यों भर आयी
अंगना में बाजे शहनाई
बेटी तो है धन ही पराया
पास इसे अपने कौन रख पाया
पिया संग जा बसे अपने घर में
यह सोच मैं करूं विदाई
अंगना में बजे शहनाई
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
Hriday hmesha baccha rehta
हृदय हमेशा बच्चा रहता
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
निष्कपट निस्वार्थ और भोला-भाला
उन्बूझ रहस्य से अनभिग्य ,मतवाला
उन्मुक्त सोच होती वसुधा पर
न होता कल्पना का कोई रखवाला
जीवन होता रस से पूरित
और पनपता सीधा सच्चा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
विसंगतियों को लग जाता जाला
न निस्वार्थ प्रेम पर होता ताला
मैं उत्सुकता में हर पल जीता
मेरा नव रचना में हर पल बीता
भेद-भाव न होता दिल में
मन हर प्राणी को समझे अच्छा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
निष्कपट निस्वार्थ और भोला-भाला
उन्बूझ रहस्य से अनभिग्य ,मतवाला
उन्मुक्त सोच होती वसुधा पर
न होता कल्पना का कोई रखवाला
जीवन होता रस से पूरित
और पनपता सीधा सच्चा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
विसंगतियों को लग जाता जाला
न निस्वार्थ प्रेम पर होता ताला
मैं उत्सुकता में हर पल जीता
मेरा नव रचना में हर पल बीता
भेद-भाव न होता दिल में
मन हर प्राणी को समझे अच्छा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
गुरुवार, 16 सितंबर 2010
chint rekhaayen
चिंत- रेखाए.
मैं उधय्त होता करने परिवर्तित
विधि विधान के लिखे लेख
गहरा जाती है नभ मस्तक पर
आढ़ी तिरछी चिंत- रेख
हो न विचलित विपदाओं से
जो बढ़ता है पुरजोर निरंतर
कोई कूल क्या बांध सकेगा
जल धारा जब बहे चिरन्तर
प्रयतन भागीरथ ना होगा निष्फल
गंगा उतर स्वयम आएगी
रचने को संसार सुनहरा
वसुधा जगह स्वयं बनाएगी
ओ' चिंता की तिरछी रेखाओं
जा दूर कहीं नक्षत्र बनाओ
सौगंध तुम्हे है मेरे श्रम की
यूं निर्ममता से मत तडपाओ
मृत हो जाती मृदुल कल्पना
जनम तुम्हारा लेते ही
ओ'नागिन सी दिखती रेखाओं
ना यूं प्रतिभा को डस कर जाओ
मैं उधय्त होता करने परिवर्तित
विधि विधान के लिखे लेख
गहरा जाती है नभ मस्तक पर
आढ़ी तिरछी चिंत- रेख
हो न विचलित विपदाओं से
जो बढ़ता है पुरजोर निरंतर
कोई कूल क्या बांध सकेगा
जल धारा जब बहे चिरन्तर
प्रयतन भागीरथ ना होगा निष्फल
गंगा उतर स्वयम आएगी
रचने को संसार सुनहरा
वसुधा जगह स्वयं बनाएगी
ओ' चिंता की तिरछी रेखाओं
जा दूर कहीं नक्षत्र बनाओ
सौगंध तुम्हे है मेरे श्रम की
यूं निर्ममता से मत तडपाओ
मृत हो जाती मृदुल कल्पना
जनम तुम्हारा लेते ही
ओ'नागिन सी दिखती रेखाओं
ना यूं प्रतिभा को डस कर जाओ
शनिवार, 11 सितंबर 2010
Nayee ranjish ko bayaan kare
रंजिश को बयाँ करें
उदास है मंज़र
गुमसुम हैं चिडियों के चह-चहे
तन्हाई है चार सू
कोई तो जाकर उनसे कहे
ग़मगीन है शाम
उजड़े चमन के जलजले
घुटता है दम यहाँ
कोई भला कब तक सहे
उठी जब निगाह
तो जाना शर्मिंदा था मैं
रुकी जब सांस
तो जाना जिन्दा था मैं
डुबो कर मेरे लहू में
मुझे यूं जाने वाले
आह है बाकी
नई रंजिश को बयाँ करे
उदास है मंज़र
गुमसुम हैं चिडियों के चह-चहे
तन्हाई है चार सू
कोई तो जाकर उनसे कहे
ग़मगीन है शाम
उजड़े चमन के जलजले
घुटता है दम यहाँ
कोई भला कब तक सहे
उठी जब निगाह
तो जाना शर्मिंदा था मैं
रुकी जब सांस
तो जाना जिन्दा था मैं
डुबो कर मेरे लहू में
मुझे यूं जाने वाले
आह है बाकी
नई रंजिश को बयाँ करे
शुक्रवार, 10 सितंबर 2010
Hindi diwas per
हिंदी दिवस
अपने ही घर में आज अगर मेरे बच्चे मेरी माँ (यानि अपनी नानी) से अनजान है तो दोषी में खुद हूँ
आज हमें क्यों आवश्यकता आन पड़ी है अपने ही देश में अपनी ही मात्र भाषा की दिवस मनाने की
क्यों हमें आवश्यकता आन पड़ी है अपने आप को यह याद दिलाने की कि हिंदी हमारी अपनी है
हम हिंदी भाषी है
किसी भी पशु पक्षी को कोई भी नहीं सिखाता कि कैसे बोलो
चिड़िया चह-चहाती है
तोता टें- टें करता है
सब अपनी बोली बोलते है
फिर हम हिन्दुस्तानी क्यों नहीं ?
अपने ही घर में आज अगर मेरे बच्चे मेरी माँ (यानि अपनी नानी) से अनजान है तो दोषी में खुद हूँ
आज हमें क्यों आवश्यकता आन पड़ी है अपने ही देश में अपनी ही मात्र भाषा की दिवस मनाने की
क्यों हमें आवश्यकता आन पड़ी है अपने आप को यह याद दिलाने की कि हिंदी हमारी अपनी है
हम हिंदी भाषी है
किसी भी पशु पक्षी को कोई भी नहीं सिखाता कि कैसे बोलो
चिड़िया चह-चहाती है
तोता टें- टें करता है
सब अपनी बोली बोलते है
फिर हम हिन्दुस्तानी क्यों नहीं ?
गुरुवार, 9 सितंबर 2010
Thakur ka gaanv
ठाकुर का गाँव
सडकों पर फैले हज़ारों यूं कंकर
आँगन में बिखरा वो धेनु का गोबर
काँटों में जकड़े वो नन्हें धूल के कण
हाथ में माखन लिए दौड़ें बाल गण
बिताया है बचपन जहां नंगे पाँव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वो मिटटी की खुशबू खनक चूड़ियों की
पनघट पर जाती हंसी ग्वालिनो की
बारिश में ढहते वो कच्चे मकान
ग्राहक को तरसे वो खाली दुकान
माटी के चूल्हे में जलता अलाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वही घाट, कुंजें वो वीथि गोवर्धन
वही तीर कालिंदी हुआ कालिया मर्दन
वो डार कदम्ब की और वही निधिवन
वही वाटिका गोप माधव की चितवन
भर भर पिघलता उसके रस का जमाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
जहाँ जाने को मन हो यूं बेताब
जहां मधुरता का आये सैलाब
जहाँ अनमना मन भी हो जाए शांत
जहाँ जाने से मिटें सारे भ्रांत
जहाँ चपलता में आये ठहराव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
सडकों पर फैले हज़ारों यूं कंकर
आँगन में बिखरा वो धेनु का गोबर
काँटों में जकड़े वो नन्हें धूल के कण
हाथ में माखन लिए दौड़ें बाल गण
बिताया है बचपन जहां नंगे पाँव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वो मिटटी की खुशबू खनक चूड़ियों की
पनघट पर जाती हंसी ग्वालिनो की
बारिश में ढहते वो कच्चे मकान
ग्राहक को तरसे वो खाली दुकान
माटी के चूल्हे में जलता अलाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वही घाट, कुंजें वो वीथि गोवर्धन
वही तीर कालिंदी हुआ कालिया मर्दन
वो डार कदम्ब की और वही निधिवन
वही वाटिका गोप माधव की चितवन
भर भर पिघलता उसके रस का जमाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
जहाँ जाने को मन हो यूं बेताब
जहां मधुरता का आये सैलाब
जहाँ अनमना मन भी हो जाए शांत
जहाँ जाने से मिटें सारे भ्रांत
जहाँ चपलता में आये ठहराव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
बुधवार, 8 सितंबर 2010
Var do he bhagwan
वर दो हे भगवान्
हो यशस्वी ,हो तेजवान
रहे स्वस्थ और हो ' बलवान
दीर्घायु हो शिर्शायण
ऐसा वर दो हे भगवान्
चमके माँ की आँख की तारा
बने पिता का सबल सहारा
कर्मठ को कर बने महान
ऐसा वर दो हे भगवान्
हो सत्यवान करे पुरषार्थ
प्रयत्न हमेशा करे निस्वार्थ
हो मुट्ठी में उसके जहान
ऐसा वर दो हे भगवान्
हो यशस्वी ,हो तेजवान
रहे स्वस्थ और हो ' बलवान
दीर्घायु हो शिर्शायण
ऐसा वर दो हे भगवान्
चमके माँ की आँख की तारा
बने पिता का सबल सहारा
कर्मठ को कर बने महान
ऐसा वर दो हे भगवान्
हो सत्यवान करे पुरषार्थ
प्रयत्न हमेशा करे निस्वार्थ
हो मुट्ठी में उसके जहान
ऐसा वर दो हे भगवान्
Jeevan ki chatri
जीवन की छतरी
जैसे तेज़ बारिश में
छतरी साथ नहीं देती है
बौछार यहाँ वहां तहां से
बदन को भिगो जाती है
वैसे ही
विपरीत काल में
आशा की चादर साथ नहीं देती है
निराशा यहाँ वहां तहां से
जीवन को छू जाती है
जैसे तेज़ बारिश में
छतरी साथ नहीं देती है
बौछार यहाँ वहां तहां से
बदन को भिगो जाती है
वैसे ही
विपरीत काल में
आशा की चादर साथ नहीं देती है
निराशा यहाँ वहां तहां से
जीवन को छू जाती है
laghuta Jeevan Ki
लघुता जीवन की
हरे दरख्तों की
फलों से लदी झुकी
लचकती हुई डालियों के बीच
आसमान को छूती
सूखी शुष्क शाखा
कराती है अपने बौनेपन का एहसास
लघुता यूं जीवन की
इंसान के परिमाप को बढाती है
लकिन अंदर से कितना खोखला कर जाती है
चाह कर भी मानव
सब से मिल नहीं पाता है
और एक जैसा होते हुए भी
अपने को दूसरों से भिन्न पाता है
हरे दरख्तों की
फलों से लदी झुकी
लचकती हुई डालियों के बीच
आसमान को छूती
सूखी शुष्क शाखा
कराती है अपने बौनेपन का एहसास
लघुता यूं जीवन की
इंसान के परिमाप को बढाती है
लकिन अंदर से कितना खोखला कर जाती है
चाह कर भी मानव
सब से मिल नहीं पाता है
और एक जैसा होते हुए भी
अपने को दूसरों से भिन्न पाता है
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
Tumhara ehsaas
तुम्हारा एहसास
आकर मुझे यूं , जब मुझसे चुराया तुमने
जागते हुए कोई ख्वाब दिखाया तुमने
भूल चुके थे कभी दर्द भी होता है सीने में
चुपके से आकर यह एहसास जगाया तुमने
अपने हाथो की लकीरों में मुझे यूं बसाया तुमने
प्यार का दस्तूर हर वजह निभाया तुमने
मर कर भी ना कभी होंगे जुदा हम दोनों
हर सांस की आवाज़ में यह गीत सुनाया तुमने
कितने तन्हा , बिन तुम्हारे थे यह जाना हमने
जी कर भी ना जिन्दा थे यह माना हमने
जल उठेंगे हज़ारो चिराग यूं राहों में
अपने प्यार का दिया , जब दिल में जलाया तुमने
आकर मुझे यूं , जब मुझसे चुराया तुमने
जागते हुए कोई ख्वाब दिखाया तुमने
भूल चुके थे कभी दर्द भी होता है सीने में
चुपके से आकर यह एहसास जगाया तुमने
अपने हाथो की लकीरों में मुझे यूं बसाया तुमने
प्यार का दस्तूर हर वजह निभाया तुमने
मर कर भी ना कभी होंगे जुदा हम दोनों
हर सांस की आवाज़ में यह गीत सुनाया तुमने
कितने तन्हा , बिन तुम्हारे थे यह जाना हमने
जी कर भी ना जिन्दा थे यह माना हमने
जल उठेंगे हज़ारो चिराग यूं राहों में
अपने प्यार का दिया , जब दिल में जलाया तुमने
रविवार, 5 सितंबर 2010
Jeevan hai vyapaar
जीवन एक व्यापार
यह जीवन है एक व्यापार
देना पड़ता है मूल्य यहाँ
कुछ मिलता नहीं उपहार
प्रकृति की यह अतुल संपदा
भरपूर खजाने सौरभ के
लूट लूट जग हुआ अचंभित
अनभिग्य रहा वह व्यवहार से
अब होने लगे खजाने खाली
ओ' प्राकृतिक सम्पदा के वाली
बदले में मांग रही यह धरा
हमसे जीवन का अनुपम प्यार
आओ समझे रीत व्यापर की
आज नकद और कल उधार की
जो बोया है सो पायो गे
जैसा काटो वह खाओ गे
जीवन के इस रंग मंच पर
अभिनय करता मानव जीवन
तरह तरह के किरदारों का
मंचन करता मानव जीवन
सारा जीवन होम करने पर ही
मिलता है कफ़न गज चार
यह जीवन है एक व्यापार
यह जीवन है एक व्यापार
देना पड़ता है मूल्य यहाँ
कुछ मिलता नहीं उपहार
प्रकृति की यह अतुल संपदा
भरपूर खजाने सौरभ के
लूट लूट जग हुआ अचंभित
अनभिग्य रहा वह व्यवहार से
अब होने लगे खजाने खाली
ओ' प्राकृतिक सम्पदा के वाली
बदले में मांग रही यह धरा
हमसे जीवन का अनुपम प्यार
आओ समझे रीत व्यापर की
आज नकद और कल उधार की
जो बोया है सो पायो गे
जैसा काटो वह खाओ गे
जीवन के इस रंग मंच पर
अभिनय करता मानव जीवन
तरह तरह के किरदारों का
मंचन करता मानव जीवन
सारा जीवन होम करने पर ही
मिलता है कफ़न गज चार
यह जीवन है एक व्यापार
शुक्रवार, 3 सितंबर 2010
Angna mahke harsrigaar
अंगना महके हरसिंगार
तरु नव कोंपल फूटे सुरभित
डार- डार पर गुन्चे कुसुमित
लाये वासंती बयार
अंगना महके हरसिंगार
झरे फूल हो धरा सुशोभित
कहती कर मन को सम्मोहित
कब हुआ हूँ मैं बेकार
अंगना महके हरसिंगर
देखो कैसे पुष्प है गर्वित
जीवन सार है इसमें गर्भित
प्रयत्न ना होता निष्फल बेकार
अंगना महके हरसिंगार
तरु नव कोंपल फूटे सुरभित
डार- डार पर गुन्चे कुसुमित
लाये वासंती बयार
अंगना महके हरसिंगार
झरे फूल हो धरा सुशोभित
कहती कर मन को सम्मोहित
कब हुआ हूँ मैं बेकार
अंगना महके हरसिंगर
देखो कैसे पुष्प है गर्वित
जीवन सार है इसमें गर्भित
प्रयत्न ना होता निष्फल बेकार
अंगना महके हरसिंगार
swarth
स्वार्थ
क्यों समझ नहीं पाते हम दूजे की उलझन
कैसे मरते हैं रोज़ और जीते हैं जीवन
क्यों बुनते रहते हैं अपने ही स्वप्पन जाल
और उनमें रखतें हैं बस अपना ही ख्याल
कर अर्जित ज्ञान हुए हम दक्ष, प्रवीण
लेकिन दिल से हो चुके है हम संगीन
समझ नहीं पाते मानव की गुणवत्ता
भौतिकता की आड़ में भूले मानवता
भूल चुके हैं हम अपना अपनत्व यहाँ
हो चुका हैं बौना सब व्यक्तित्व यहाँ
मानवता की खोद कब्र चौराहे पर
खोज रहें हैं हैं हम अपना अमरत्व यहाँ
क्यों समझ नहीं पाते हम दूजे की उलझन
कैसे मरते हैं रोज़ और जीते हैं जीवन
क्यों बुनते रहते हैं अपने ही स्वप्पन जाल
और उनमें रखतें हैं बस अपना ही ख्याल
कर अर्जित ज्ञान हुए हम दक्ष, प्रवीण
लेकिन दिल से हो चुके है हम संगीन
समझ नहीं पाते मानव की गुणवत्ता
भौतिकता की आड़ में भूले मानवता
भूल चुके हैं हम अपना अपनत्व यहाँ
हो चुका हैं बौना सब व्यक्तित्व यहाँ
मानवता की खोद कब्र चौराहे पर
खोज रहें हैं हैं हम अपना अमरत्व यहाँ
बुधवार, 1 सितंबर 2010
koyee anjaanaa sa
कोई अनजाना सा
झांक कर चिलमन से मुझे यूं , चुपचाप चला जाता है कोई
दूर से कर के इशारा मुझे यूं , पास अपने बुलाता है कोई
ता उम्र जख्म जो मिले है जमाने से,
चुपचाप उनको सहला जाता है कोई
दहकती है एक आग हर वक्त जो सीने में,
अपनी साँसों की गर्म हवाओं से बुझाता है कोई
खौफ -ए- रुसवाई की चादर में लिपटा सा वो है
खुल कर सामने आने से कतराता है कोई
झांक कर चिलमन से मुझे यूं , चुपचाप चला जाता है कोई
दूर से कर के इशारा मुझे यूं , पास अपने बुलाता है कोई
ता उम्र जख्म जो मिले है जमाने से,
चुपचाप उनको सहला जाता है कोई
दहकती है एक आग हर वक्त जो सीने में,
अपनी साँसों की गर्म हवाओं से बुझाता है कोई
खौफ -ए- रुसवाई की चादर में लिपटा सा वो है
खुल कर सामने आने से कतराता है कोई
vafaa
वफ़ा
फिर यूं कभी वादा ना हम से किया करो
गर हो कभी यह इल्म इसके संग जिया करो
वर्ना बेवफाई का सबब ना पूछ पाओगे
भीड़ में खो जायगें, ना ढूंढ पाओगे
वफ़ा जब लौट कर आएगी हम को आजमाने को
बचेगा कुछ भी ना अवशेष हम को मनाने को
लौटा ना पाएंगी तुम्हारी दस्तकें मुझको
मुझे यूं मौत ले जाए , तुम खड़े मौत को तरसो.
फिर यूं कभी वादा ना हम से किया करो
गर हो कभी यह इल्म इसके संग जिया करो
वर्ना बेवफाई का सबब ना पूछ पाओगे
भीड़ में खो जायगें, ना ढूंढ पाओगे
वफ़ा जब लौट कर आएगी हम को आजमाने को
बचेगा कुछ भी ना अवशेष हम को मनाने को
लौटा ना पाएंगी तुम्हारी दस्तकें मुझको
मुझे यूं मौत ले जाए , तुम खड़े मौत को तरसो.
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