शनिवार, 11 सितंबर 2010

Nayee ranjish ko bayaan kare

रंजिश को बयाँ करें

उदास है मंज़र
गुमसुम हैं चिडियों के चह-चहे
तन्हाई है चार सू
कोई तो जाकर उनसे कहे
ग़मगीन है शाम
उजड़े चमन के जलजले
घुटता है दम यहाँ
कोई भला कब तक सहे
उठी जब निगाह
तो जाना शर्मिंदा था मैं
रुकी जब सांस
तो जाना जिन्दा था मैं
डुबो कर मेरे लहू में
मुझे यूं जाने वाले
आह है बाकी
नई रंजिश को बयाँ करे