बुधवार, 1 सितंबर 2010

vafaa

वफ़ा

फिर यूं कभी वादा  ना हम से किया करो
गर हो कभी यह इल्म  इसके संग  जिया करो
वर्ना बेवफाई का सबब ना पूछ पाओगे
भीड़ में खो जायगें, ना ढूंढ पाओगे
वफ़ा जब लौट कर आएगी हम को आजमाने को
बचेगा कुछ भी ना अवशेष हम को मनाने को
लौटा ना पाएंगी तुम्हारी दस्तकें मुझको
मुझे यूं मौत ले जाए , तुम खड़े मौत को तरसो.