बुधवार, 8 सितंबर 2010

laghuta Jeevan Ki

लघुता जीवन की

हरे दरख्तों की
फलों से लदी झुकी
लचकती हुई डालियों के बीच
आसमान को छूती
सूखी शुष्क शाखा
कराती है अपने बौनेपन का एहसास
लघुता यूं जीवन की
इंसान के परिमाप को बढाती है
लकिन अंदर से कितना खोखला कर जाती है
चाह कर भी मानव
सब से मिल नहीं पाता है
और एक जैसा होते हुए भी
अपने को दूसरों  से भिन्न पाता है