अंगना महके हरसिंगार
तरु नव कोंपल फूटे सुरभित
डार- डार पर गुन्चे कुसुमित
लाये वासंती बयार
अंगना महके हरसिंगार
झरे फूल हो धरा सुशोभित
कहती कर मन को सम्मोहित
कब हुआ हूँ मैं बेकार
अंगना महके हरसिंगर
देखो कैसे पुष्प है गर्वित
जीवन सार है इसमें गर्भित
प्रयत्न ना होता निष्फल बेकार
अंगना महके हरसिंगार