रविवार, 5 सितंबर 2010

Jeevan hai vyapaar

जीवन एक व्यापार

यह जीवन है एक व्यापार
देना पड़ता है मूल्य यहाँ
कुछ मिलता नहीं उपहार
प्रकृति की यह अतुल संपदा
भरपूर खजाने सौरभ के
लूट लूट जग हुआ अचंभित
अनभिग्य रहा वह व्यवहार से
अब होने लगे खजाने  खाली
ओ' प्राकृतिक सम्पदा के वाली
बदले में मांग रही यह धरा
हमसे जीवन का अनुपम प्यार

 आओ समझे रीत व्यापर की
आज नकद और कल उधार की
जो बोया  है सो पायो गे
जैसा काटो वह खाओ गे
जीवन के इस रंग मंच पर
अभिनय करता मानव जीवन
तरह तरह के किरदारों का 
मंचन करता मानव  जीवन
सारा  जीवन होम करने पर ही
मिलता है  कफ़न गज चार
यह जीवन है एक व्यापार