ठाकुर का गाँव
सडकों पर फैले हज़ारों यूं कंकर
आँगन में बिखरा वो धेनु का गोबर
काँटों में जकड़े वो नन्हें धूल के कण
हाथ में माखन लिए दौड़ें बाल गण
बिताया है बचपन जहां नंगे पाँव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वो मिटटी की खुशबू खनक चूड़ियों की
पनघट पर जाती हंसी ग्वालिनो की
बारिश में ढहते वो कच्चे मकान
ग्राहक को तरसे वो खाली दुकान
माटी के चूल्हे में जलता अलाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वही घाट, कुंजें वो वीथि गोवर्धन
वही तीर कालिंदी हुआ कालिया मर्दन
वो डार कदम्ब की और वही निधिवन
वही वाटिका गोप माधव की चितवन
भर भर पिघलता उसके रस का जमाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
जहाँ जाने को मन हो यूं बेताब
जहां मधुरता का आये सैलाब
जहाँ अनमना मन भी हो जाए शांत
जहाँ जाने से मिटें सारे भ्रांत
जहाँ चपलता में आये ठहराव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!