गुरुवार, 9 सितंबर 2010

Thakur ka gaanv

ठाकुर का गाँव

सडकों पर फैले हज़ारों यूं कंकर
आँगन में बिखरा वो धेनु का गोबर
काँटों में जकड़े वो नन्हें धूल के कण
हाथ में माखन लिए दौड़ें बाल गण
बिताया है बचपन जहां नंगे पाँव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!

वो मिटटी की खुशबू खनक चूड़ियों की
पनघट पर जाती हंसी ग्वालिनो की
बारिश में  ढहते वो कच्चे मकान
ग्राहक को तरसे वो खाली दुकान
माटी के चूल्हे में जलता अलाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!

वही घाट, कुंजें वो  वीथि गोवर्धन
वही तीर कालिंदी हुआ  कालिया मर्दन
वो डार कदम्ब की और वही निधिवन
वही वाटिका गोप   माधव की चितवन
भर भर पिघलता उसके रस का जमाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!

जहाँ जाने  को मन हो यूं बेताब
जहां मधुरता का आये सैलाब
जहाँ अनमना मन भी हो जाए शांत
जहाँ जाने से मिटें सारे भ्रांत
जहाँ चपलता में आये ठहराव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!