रविवार, 31 जुलाई 2011

maano ho chandan abeer

मानो हो चन्दन अबीर

प्रसवित होती जब भी वेदना
हृदय गर्भ के प्रांगन से 
ढुलक- ढुलक जाते हैं अश्रु
नयनों के कोरे आँचल से
थर थर्राते  सूखे लब ज्यो  
पल्लव शुष्क तरु की डाली से
टूटे तारों से झंकृत वीणा
सजे विरहनी आली से
गीतों की मत बात करो तब
भाव भी हो जाते हैं गौण
पीड़ा से विचलित  हो मानव
भाव विह्ल हो जाता मौन
पा कर उपमा ,छुपी वेदना
जब जब भी है  अंक में आती
नन्हे बालक से मुस्का कर
निज मन हो फिर सहला जाती
व्यवस्थित हो जाता तब जीवन
रूठा मन हो जाए  सुधीर
रंग चिटक जाते अम्बर में
मानो हो चन्दन अबीर



शनिवार, 30 जुलाई 2011

yaadon ke sholey

याद के शोले
भूलने लगा था दर्द जो
फिर अब  टीसने लगा है
भरने लगा था जख्म जो
फिर अब हरने लगा है
ना था कोई शिकवा गिला तुम से
तम्मन्नाये  हज़ारों थी
ना की थी तुमसे ताकीदें 
उम्मीदें हज़ारों थी
खामोश मोहब्बत का गम
उभ्र्रने सा लगा है
लब से तेरा नाम अब
निकलने सा लगा है
डरता हूँ कि ना हो जाए
अब कोई गुस्ताखी
खिदमत में  मोहब्बत की
दुनिया ही लुटा दी
गुमनाम ही रह जाने दो
मेरा यह  फ़साना 
अनजान ही रहने दो 
यह किस्सा पुराना
चलो याद नहीं करते
कोई भूली कहानी
रात की  आँखों से
बह जाए गा पानी
गूंजेगे फिर वो  नगमे
वो सरगम वो   तराने
बज जायेंगे जब साज  
 ले तरन्नुम सुहाने
खामोश है , खामोशी
खामोश ही रहने दो
यादों के इन शोलो को
अब और हवा ना दो




 

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

chlna hi hai kaam nirntar

चलना ही है काम निरंतर

बिखर गया था मोती मोती 
टूटा था जो इक दिन  थक के
और भी ज्यादा भीग गया था 
चल निकला  लहरों से बच के 
गहरा जाता हूँ मैं उतना 
जितना उपर आ जाता हूँ 
ठहरा जाता हूँ  मैं  उतना
जितना तेज़ मैं चल पाता हूँ
गतिशील जो जीवन सक्षम 
गतिहीन  तो जीवन अक्षम
टूटा बीच तो छूटा बंधन
चलने का ही नाम है जीवन
मन के कोरे शिला लेख है
शंकित मर्म , अनबूझे अंतर
मन्त्र और मर्यादा है बस
चलना ही है काम निरंतर

दो दिन चले अढाई कोस
 यही तो बस है  चलना ठोस
द्रुत और मंद का कैसा अंतर
आत्मसात कर लिया जब अंदर
चलना और बस चलना मुझको
अब चौराहे ना छलना मुझको
कालजयी बन जपू यह मंतर
चलना ही है काम निरंतर

मन्त्र वही जो बोल रहा हूँ
परवशता से जूझ जूझ कर
प्राची के पट खोल रहा हूँ
कठिन साधना , कठिन डगर है
प्रेरक साधक कठिन प्रबल है
अपना लो अब तुम भी तंतर
चलना ही है काम निरंतर
पा कर खोना ,खो कर पाना
है जीवन की रीत निराली
बंधा हुआ हर प्राणी इसमें
यह जीवन की प्रीत निराली
सहज कठिन जब लगे एक सा
मानो तब ही हुआ सवेरा
तम की काली चादर ओढ़े
भागा दुर्भाग्य ढूंढे बसेरा

चलो मिले सब साथ बढे
भूल भगा कर सारे अंतर
चलना ही है काम निरंतर


क्यों मैं लेता हूँ अब साँसे
ख़त्म एक दिन हो जाना है
क्यों मैं करता हूँ निर्माण
ध्वस्त एक दिन हो जाना है
क्यों मैं तेरे पीछे भागू
छल है एक दिन खो जाना है
दिन में तम और रातें उजली
क्यों उलझ सुलझ में फंसा भयंकर
चलना ही है काम निरंतर




arunody

अरुणोदय

प्राची के पट खोले दिशी ने
झाँका जब मेरे अंगना
रुनझुन रुनझुन पायल बाजी
खनक उठा सोया कंगना
पल में सिमटी चादर काली
चानन फ़ैल गया चहुँ और
मंद पवन संग पल्लव डोले
विहग वृन्द का मच गया शोर
दूर गिरी की ओट से दिनकर
आया हो रथ पर सवार
अरुण रश्मियों की आभा में
धुल गये सब  प्राकृतिक विकार
कनक मणि सी  जगमग करती 

फूलों पर शबनम की बूंदे
नील गगन भी हरित धरा को
बढ़  कर आलिंगन में भर ले
शरमाई सकुचाई धरनी
ओढ़े चूनर रक्त वर्ण सी 
प्रसवित करती नवल चेतना 
कुसुमित करती सजल धवल सी 
 रक्ताभ से दमके अम्बर 
छलकाता नव रस मधु गागर 
उष्म ,ऊर्जा आनंद स्रोत से 
भर जाते तन मन के सागर 
मन मोदक सुंदर  अरुणोदय 
नभाछादित उल्लास स्रोत 
थकित, दुखित,  रोगिल प्राणी भी 
जीवन से हो जाए ओत-प्रोत  



गुरुवार, 28 जुलाई 2011

bas pyaar karo

बस पयार करो !

एक दिल ही तो है जो हर पल रोज़ तडपता  है
रूक भी जाए अगर जीवन ,तो भी यह धडकता   है
अरमान की बात क्या करते हो , यह तो रोज़ उपजते है
टूटे दिल की दीवारों से , रिस रिस रोज़ पिघलते हैं
मनन करो या अब चिंतन ,क्या फर्क भला अब पड़ता है
बुनियादे दिल की जो बनी हुई उसमे जब भाव फिसलता है
आने वाले हर पल को जिए ,उठो बढ़ो गलहार करो
अब छोड़ो ग्लानी शंका सब ,दिल है, अरमा है बस  प्यार करो

रविवार, 24 जुलाई 2011

ESCAPE FROM A MONOTONOUS LIFE ( by Swishti Sharma , My Daughter)

                                                                 ESCAPE FROM A MONOTONOUS LIFE

We got to know about an excursion to Dhanauli,Nainital about half a month before the trip.We were very excited and were very eager to give our names for this trip.Although me and many of friends went in the second group we were able to enjoy ourselves a lot.We started our journewy to Dhanauli via bus at night .It was an over-night journey.Although we were feeling sleepy we forced ourselves to stay awake so that we didn't miss out on the fun part.It was a very convenient and energetic journey.We sang songs all night and played games.Finally we all dozed off as we were very tired.We got chips and juices in the bus from time to time so we did not feel like we could goble up a horse .We reached our destinatin clicking pictures of various beautiful sceneries, singing and pulling each other's leg.We were awestrucked by the beautiful surroundings.We chose our tent mates and were escorted to our tents.The tents were luxurious and bore resemblance to the ones you would find at five star resorts.From our tent we could see a fabulous view which comprised of clouds and mist.After a refreshing meal and some rest we went out for a forest walk.The vegetation and the animals there were pleasant to the eye.The weather was pleasant and enjoyable except for the warm afternoons.We came back to our tents after a good walk in the woods which was tiring but was an enthralling experience.After the walk,we ate to our heart's content and soon the evening came and we were served with snacks and after the sunset there was a bonfire in schedule.At night the stars adorned the sky.As it was dark the place looked spooky so we lit up our torches.The dinner was palatable and at the very thought of our tents waiting for us we went to bed.We had to forcefully open our sleepy eyes early in the morning at six  for breakfast and later a water fall trek.We went through the woods in search of the water fall which was tiring but an enchanting experience.After a lot of stumbling and grumbling we finally reached the place we were searching for.The water from the water fall was refreshing and after we had filled our bottles with the cool water we went to the place from where the water fall originated.We took a short cut to our tents which was unfortunately rough and we had to climb up the edgy and slippery rocks.After sweating profusely we reached the place where we set up our cooking vessels and ingredients and  cooked some tasty maggy which we relished a lot.We reached our tents after an hours walk and dozed off as soon as our heads touched the pillows.Very soon after the beautiful sunset we were served with snacks and then enjoyed the bonfire.After dinner me and my friends headed towards our tent and shared our day's experiences.Next day was not as tiring as there were not too many activities to be performed.We enjoyed participating in activities such as Barma Bridge,Flying Fox,Valley Crossing and many others.We had to pack our luggage the same day so that our journey back home was not delayed.When we were informed about our departure we already started missing the place,the weather and the trainers.As if the place was going to miss us too,it rained on the day of our departure.We were back to the pavillion after a good ten hour bus ride with sweet thoughts and memories of our journey to Dhanauli.

paisa yaan prem

पैसा याँ प्रेम


पैसा ज़रूरी है जीवन के लिए
लेकिन ज़रूरी नहीं रिश्तो के लिए
रिश्तों की बुनियाद प्रेम है पैसा नहीं
पैसा व्यवहार है ,प्रेम निः स्वार्थ है
पैसे का मोल है , प्रेम अनमोल है
पैसा चल है , अद्भुत छल है
प्रेम अमर है ,शाश्वत , अजर है
पैसे और प्रेम  का अध्भुत नाता है
एक वक्री , दूजा  सरलता का ज्ञाता है
करो ना तुलना तुम पैसे की प्रेम से
एक  धरा पर  श्रापित है तो दूजा
नैसर्गिक अधिष्ठाता है 

शनिवार, 23 जुलाई 2011

rootha rab manaataa hoon


रूठा रब मनाता हूँ

खुदा जाने कि क्या है  अब  यह  जिन्दगी मेरी 
रहता हू  मै डूबा प्यार के उथले समुन्दर मे 
खुदा  खुद सामने भी आ जाये तो बेखबर ही रहता हूँ 
तस्सुवर यार का जब् हो तो सिजदे  मे सर झुकाता हूँ
करेगा कौन अब एतबार मेरी मासूमियत का दोस्त 
डूबा बेखुदी में भी तो तुम को ही  बुलाता हूँ 
खुदाया अब खुदा भी हो नहीं सकता खफा मुझसे 
डूब कर  यार के इस प्यार मे,  रूठा रब मनाता हूँ 


गुरुवार, 21 जुलाई 2011

bhaavon ki kheti


भावों की खेती 

रचती हूँ जब गीत नया में
चुपके से आ जाते तुम हो 
हर इक भाव का शब्द बना कर 
मुखर रूप दे जाते तुम हो  
बन जाती शब्दों की माला 
पहन गले  इतराते तुम हो 
चूम चूम माला का मोती 
स्नेह सरस सरसाते तुम हो  
अंतर की बंजर धरती पर 
भाव बीज बो जाते तुम हो 
जब गीतों की खेती करती हूँ 
प्रेम सुधा बरसाते तुम हो 

koyee vh


कोई वह 

तम्मानाएं 
सिर उठाती हैं जब भी 
उमड़ कर आने को 
पकड़ लेता है उनको हर बार 
कोई वह अनजाना सा 
तड़प कर तोड़ देती है दम 
रही निर्जीव हो कर जब 
साँसे फूँक देता है हर बार 
कोई वह बेगाना सा 
समझ कर भूल जाते हैं 
याँ नासमझ हैं भूले से 
हो कर रूबरू हमसे 
अक्स की  पहचान कराता है 
कोई वह पहचाना सा 
चलते है कदम दो साथ 
हो जाती है लडखडाहट 
लपक कर थाम लेता है 
कोई वह सयाना सा 

 


Dastaken

दस्तकें 
दबे पाँव आती हैं 
ठिठक जाती हैं 
साहस जुटातीं हैं 
हम को बुलाती हैं 

हम महसूस करते हैं 
जान जाते हैं 
हर दस्तक के 
आ जाने का सबब 

फिर भी हर दस्तक से 
नज़रे चुरातें हैं 
नज़र अंदाज़ करते हैं 
मुहं फेर लेते हैं 

देते है दिलासा यही मनको 
दस्तकें और भी हैं 


शनिवार, 16 जुलाई 2011

ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?

ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?




मयस्सर नहीं है जहाँ दो पल का भी चैन 
ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?
रौशन नहीं है जहा हर घर में चिराग 
ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?
ताबूत तरसता है खुद पाने को जीवन 
शमशान सुलगता है बुझ जाने को पल पल 
इक  बूँद चाह  में,  हर बूँद है प्यासी 
हर लब  की हंसी में दिख  जाती उदासी 
मयस्सर नहीं जहां दो जून का भोजन 
ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?
तड़पन है बस, नहीं रूहों में लगाव 
ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?


रविवार, 3 जुलाई 2011

muskuraaten hain phool kyo

मुस्कुराते है फूल क्यों 

सागर में तूफ़ान आया 
नदी में उफान लाया  
क्रोधित हुआ जब भी बादल 
नभ में विद्युत का कौंध लाया 
क्रुद्ध धरा ने तज दिया जीवन 
क्रुद्ध पवन तो ध्वस्त हुआ सब 
विहग रुष्ट तो तज दे भोजन 
मानव रुष्ट तो तहस-नहस  सब
क्रोध जवाल की ज्वाला में 
हुए होम सब अवनि अम्बर 
बस एक तत्व धरती पर ऐसा 
ना हो विचलित ध्रुव तारे जैसा 
हँसता है वह हर परिस्थिति में 
देता सौरभ विषम स्थिति में 
भेद समझ ना पाया मानस 
उठे ज्वार जब उसके अंतस 
कैसे कर पाता है वश में
कैसे हँसता है  हर  पल में 
नाजुक तन है नाजुक मन है 
हँसना ही है काम निरंतर 
झर जाता है पांखुर पांखुर 
क्रोध अगर छू ले तनिक भर 




शनिवार, 2 जुलाई 2011

sang beeta pal


संग बीता पल 
बार बार छू कर देखता है हाथ 
उस हाथ को 
और करता है महसूस  
उस छूअन को 
जो है जीवंत  आज  भी 
बार बार याद करता है मन  
केवल उस लम्हे को 
और करता है महसूस 
उस मिलन को 
जो है  प्रयत्क्ष आज भी 
वक़्त  गुजरता जाता है 
हर चक्र फिसलता जाता है   
पुकारता है ,निहारता है 
दे कर दस्तक तलाशता है 
अनुभव किसी एक पल का
शंका से उभारता है 
जीवन के सबसे कमजोर क्षण 
बड़ी द्र्द्ता से संवारता है  
 

Karm aur Bhagy


कर्म और भाग्य 

कागज़ के कोरे  टुकड़े पर 
खिंचती है जब सीधी रेखाएं 
जीवन के खाली पन्नों पर 
बन जाती सब आढ़ी रेखाएं  
संघर्ष , भाग्य और कर्मों का 
हो जाता तब  घमासान 
जीत पराजय के कुचक्र में 
तड़प के रह जाता इंसान 
यह भाग्य कहाँ है ? 
कर्म कहाँ है ?
जड़ और चेतन का महज ज्ञान 
एक मात्र  है  निज कल्पना 
एक हस्त का प्रयत्यक्ष प्रमाण 
चलो लेखनी  बहे चलो अब  धीरे -धीरे 
रचो नया इतिहास ,करो संघर्ष 
चलो अब जीवन तीरे 



aazmaayeesh


आजमाईश 

ना सोचा था कभी हमने 
फांसले बढ़ते ही जायेंगे 
चाहेंगे जितना हम  पास उनको   
उतना ही दूर पायेंगे 
भुलायेंगे जितना भी हम उनको  
उतना ही  याद आयेंगे  
मिट जाता है हर  तब्बुसम 
आंसूओं के धार में 
होंगे इम्तहान चाहत के 
हमें वह  आजमाएंगे  





chalo chodo


चलो छोड़ो !!!

देख कर भी जो कर देते है अनदेखा 
जीवन के पन्नो पर  खींच लेते  है रेखा 
ना बदला है ना बदलेगा ,अंदाज़ जीने का 
बस सीख  लिया  ढंग नया आंसू पीने का 
खंजर अब  चुभेगा जो दिल पर तो देखेंगे 
कौन कितना रिसता है ,बहता है ,सोचेंगे 
चलो छोड़ो हंसो तुम भी अब ऐ नीरज 
आजमा चुके अब  सब ढंग जीने के