संग बीता पल
बार बार छू कर देखता है हाथ उस हाथ को
और करता है महसूस
उस छूअन को
जो है जीवंत आज भी
बार बार याद करता है मन
केवल उस लम्हे को
और करता है महसूस
उस मिलन को
जो है प्रयत्क्ष आज भी
वक़्त गुजरता जाता है
हर चक्र फिसलता जाता है
पुकारता है ,निहारता है
दे कर दस्तक तलाशता है
अनुभव किसी एक पल का
शंका से उभारता है
जीवन के सबसे कमजोर क्षण
बड़ी द्र्द्ता से संवारता है