कर्म और भाग्य
कागज़ के कोरे टुकड़े पर
खिंचती है जब सीधी रेखाएं
जीवन के खाली पन्नों पर
बन जाती सब आढ़ी रेखाएं
संघर्ष , भाग्य और कर्मों का
हो जाता तब घमासान
जीत पराजय के कुचक्र में
तड़प के रह जाता इंसान
यह भाग्य कहाँ है ?
कर्म कहाँ है ?
जड़ और चेतन का महज ज्ञान
एक मात्र है निज कल्पना
एक हस्त का प्रयत्यक्ष प्रमाण
चलो लेखनी बहे चलो अब धीरे -धीरे
रचो नया इतिहास ,करो संघर्ष
चलो अब जीवन तीरे