अरुणोदय
प्राची के पट खोले दिशी ने
झाँका जब मेरे अंगना
रुनझुन रुनझुन पायल बाजी
खनक उठा सोया कंगना
पल में सिमटी चादर काली
चानन फ़ैल गया चहुँ और
मंद पवन संग पल्लव डोले
विहग वृन्द का मच गया शोर
दूर गिरी की ओट से दिनकर
आया हो रथ पर सवार
अरुण रश्मियों की आभा में
धुल गये सब प्राकृतिक विकार
कनक मणि सी जगमग करती
प्राची के पट खोले दिशी ने
झाँका जब मेरे अंगना
रुनझुन रुनझुन पायल बाजी
खनक उठा सोया कंगना
पल में सिमटी चादर काली
चानन फ़ैल गया चहुँ और
मंद पवन संग पल्लव डोले
विहग वृन्द का मच गया शोर
दूर गिरी की ओट से दिनकर
आया हो रथ पर सवार
अरुण रश्मियों की आभा में
धुल गये सब प्राकृतिक विकार
कनक मणि सी जगमग करती
फूलों पर शबनम की बूंदे
नील गगन भी हरित धरा को
बढ़ कर आलिंगन में भर ले
शरमाई सकुचाई धरनी
ओढ़े चूनर रक्त वर्ण सी
नील गगन भी हरित धरा को
बढ़ कर आलिंगन में भर ले
शरमाई सकुचाई धरनी
ओढ़े चूनर रक्त वर्ण सी
प्रसवित करती नवल चेतना
कुसुमित करती सजल धवल सी
रक्ताभ से दमके अम्बर
छलकाता नव रस मधु गागर
उष्म ,ऊर्जा आनंद स्रोत से
भर जाते तन मन के सागर
मन मोदक सुंदर अरुणोदय
नभाछादित उल्लास स्रोत
थकित, दुखित, रोगिल प्राणी भी
जीवन से हो जाए ओत-प्रोत