शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

arunody

अरुणोदय

प्राची के पट खोले दिशी ने
झाँका जब मेरे अंगना
रुनझुन रुनझुन पायल बाजी
खनक उठा सोया कंगना
पल में सिमटी चादर काली
चानन फ़ैल गया चहुँ और
मंद पवन संग पल्लव डोले
विहग वृन्द का मच गया शोर
दूर गिरी की ओट से दिनकर
आया हो रथ पर सवार
अरुण रश्मियों की आभा में
धुल गये सब  प्राकृतिक विकार
कनक मणि सी  जगमग करती 

फूलों पर शबनम की बूंदे
नील गगन भी हरित धरा को
बढ़  कर आलिंगन में भर ले
शरमाई सकुचाई धरनी
ओढ़े चूनर रक्त वर्ण सी 
प्रसवित करती नवल चेतना 
कुसुमित करती सजल धवल सी 
 रक्ताभ से दमके अम्बर 
छलकाता नव रस मधु गागर 
उष्म ,ऊर्जा आनंद स्रोत से 
भर जाते तन मन के सागर 
मन मोदक सुंदर  अरुणोदय 
नभाछादित उल्लास स्रोत 
थकित, दुखित,  रोगिल प्राणी भी 
जीवन से हो जाए ओत-प्रोत