रविवार, 3 जुलाई 2011

muskuraaten hain phool kyo

मुस्कुराते है फूल क्यों 

सागर में तूफ़ान आया 
नदी में उफान लाया  
क्रोधित हुआ जब भी बादल 
नभ में विद्युत का कौंध लाया 
क्रुद्ध धरा ने तज दिया जीवन 
क्रुद्ध पवन तो ध्वस्त हुआ सब 
विहग रुष्ट तो तज दे भोजन 
मानव रुष्ट तो तहस-नहस  सब
क्रोध जवाल की ज्वाला में 
हुए होम सब अवनि अम्बर 
बस एक तत्व धरती पर ऐसा 
ना हो विचलित ध्रुव तारे जैसा 
हँसता है वह हर परिस्थिति में 
देता सौरभ विषम स्थिति में 
भेद समझ ना पाया मानस 
उठे ज्वार जब उसके अंतस 
कैसे कर पाता है वश में
कैसे हँसता है  हर  पल में 
नाजुक तन है नाजुक मन है 
हँसना ही है काम निरंतर 
झर जाता है पांखुर पांखुर 
क्रोध अगर छू ले तनिक भर