मुस्कुराते है फूल क्यों
सागर में तूफ़ान आया
नदी में उफान लाया
क्रोधित हुआ जब भी बादल
नभ में विद्युत का कौंध लाया
क्रुद्ध धरा ने तज दिया जीवन
क्रुद्ध पवन तो ध्वस्त हुआ सब
विहग रुष्ट तो तज दे भोजन
मानव रुष्ट तो तहस-नहस सब
क्रोध जवाल की ज्वाला में
हुए होम सब अवनि अम्बर
बस एक तत्व धरती पर ऐसा
ना हो विचलित ध्रुव तारे जैसा
हँसता है वह हर परिस्थिति में
देता सौरभ विषम स्थिति में
भेद समझ ना पाया मानस
उठे ज्वार जब उसके अंतस
कैसे कर पाता है वश में
कैसे हँसता है हर पल में
नाजुक तन है नाजुक मन है
हँसना ही है काम निरंतर
झर जाता है पांखुर पांखुर
क्रोध अगर छू ले तनिक भर