चलना ही है काम निरंतर
बिखर गया था मोती मोती
बिखर गया था मोती मोती
टूटा था जो इक दिन थक के
और भी ज्यादा भीग गया था
चल निकला लहरों से बच के
गहरा जाता हूँ मैं उतना
जितना उपर आ जाता हूँ
ठहरा जाता हूँ मैं उतना
जितना तेज़ मैं चल पाता हूँ
गतिशील जो जीवन सक्षम
गतिहीन तो जीवन अक्षम
टूटा बीच तो छूटा बंधन
चलने का ही नाम है जीवन
मन के कोरे शिला लेख है
शंकित मर्म , अनबूझे अंतर
मन्त्र और मर्यादा है बस
चलना ही है काम निरंतर
दो दिन चले अढाई कोस
यही तो बस है चलना ठोस
द्रुत और मंद का कैसा अंतर
आत्मसात कर लिया जब अंदर
चलना और बस चलना मुझको
अब चौराहे ना छलना मुझको
कालजयी बन जपू यह मंतर
चलना ही है काम निरंतर
मन्त्र वही जो बोल रहा हूँ
परवशता से जूझ जूझ कर
प्राची के पट खोल रहा हूँ
कठिन साधना , कठिन डगर है
प्रेरक साधक कठिन प्रबल है
अपना लो अब तुम भी तंतर
चलना ही है काम निरंतर
पा कर खोना ,खो कर पानाजितना तेज़ मैं चल पाता हूँ
गतिशील जो जीवन सक्षम
गतिहीन तो जीवन अक्षम
टूटा बीच तो छूटा बंधन
चलने का ही नाम है जीवन
मन के कोरे शिला लेख है
शंकित मर्म , अनबूझे अंतर
मन्त्र और मर्यादा है बस
चलना ही है काम निरंतर
दो दिन चले अढाई कोस
यही तो बस है चलना ठोस
द्रुत और मंद का कैसा अंतर
आत्मसात कर लिया जब अंदर
चलना और बस चलना मुझको
अब चौराहे ना छलना मुझको
कालजयी बन जपू यह मंतर
चलना ही है काम निरंतर
मन्त्र वही जो बोल रहा हूँ
परवशता से जूझ जूझ कर
प्राची के पट खोल रहा हूँ
कठिन साधना , कठिन डगर है
प्रेरक साधक कठिन प्रबल है
अपना लो अब तुम भी तंतर
चलना ही है काम निरंतर
है जीवन की रीत निराली
बंधा हुआ हर प्राणी इसमें
यह जीवन की प्रीत निराली
सहज कठिन जब लगे एक सा
मानो तब ही हुआ सवेरा
तम की काली चादर ओढ़े
भागा दुर्भाग्य ढूंढे बसेरा
चलो मिले सब साथ बढे
भूल भगा कर सारे अंतर
चलना ही है काम निरंतर
क्यों मैं लेता हूँ अब साँसे
ख़त्म एक दिन हो जाना है
क्यों मैं करता हूँ निर्माण
ध्वस्त एक दिन हो जाना है
क्यों मैं तेरे पीछे भागू
छल है एक दिन खो जाना है
दिन में तम और रातें उजली
क्यों उलझ सुलझ में फंसा भयंकर
चलना ही है काम निरंतर