मानो हो चन्दन अबीर
प्रसवित होती जब भी वेदना
हृदय गर्भ के प्रांगन से
ढुलक- ढुलक जाते हैं अश्रु
नयनों के कोरे आँचल से
थर थर्राते सूखे लब ज्यो
पल्लव शुष्क तरु की डाली से
टूटे तारों से झंकृत वीणा
सजे विरहनी आली से
गीतों की मत बात करो तब
भाव भी हो जाते हैं गौण
पीड़ा से विचलित हो मानव
भाव विह्ल हो जाता मौन
पा कर उपमा ,छुपी वेदना
जब जब भी है अंक में आती
नन्हे बालक से मुस्का कर
निज मन हो फिर सहला जाती
व्यवस्थित हो जाता तब जीवन
रूठा मन हो जाए सुधीर
रंग चिटक जाते अम्बर में
मानो हो चन्दन अबीर
प्रसवित होती जब भी वेदना
हृदय गर्भ के प्रांगन से
ढुलक- ढुलक जाते हैं अश्रु
नयनों के कोरे आँचल से
थर थर्राते सूखे लब ज्यो
पल्लव शुष्क तरु की डाली से
टूटे तारों से झंकृत वीणा
सजे विरहनी आली से
गीतों की मत बात करो तब
भाव भी हो जाते हैं गौण
पीड़ा से विचलित हो मानव
भाव विह्ल हो जाता मौन
पा कर उपमा ,छुपी वेदना
जब जब भी है अंक में आती
नन्हे बालक से मुस्का कर
निज मन हो फिर सहला जाती
व्यवस्थित हो जाता तब जीवन
रूठा मन हो जाए सुधीर
रंग चिटक जाते अम्बर में
मानो हो चन्दन अबीर