ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?
मयस्सर नहीं है जहाँ दो पल का भी चैन
ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?
रौशन नहीं है जहा हर घर में चिराग
ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?
ताबूत तरसता है खुद पाने को जीवन
शमशान सुलगता है बुझ जाने को पल पल
इक बूँद चाह में, हर बूँद है प्यासी
हर लब की हंसी में दिख जाती उदासी
मयस्सर नहीं जहां दो जून का भोजन
ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?
तड़पन है बस, नहीं रूहों में लगाव
ऐसे गुलिस्तान को क्या कहिये ?