गुरुवार, 21 जुलाई 2011

bhaavon ki kheti


भावों की खेती 

रचती हूँ जब गीत नया में
चुपके से आ जाते तुम हो 
हर इक भाव का शब्द बना कर 
मुखर रूप दे जाते तुम हो  
बन जाती शब्दों की माला 
पहन गले  इतराते तुम हो 
चूम चूम माला का मोती 
स्नेह सरस सरसाते तुम हो  
अंतर की बंजर धरती पर 
भाव बीज बो जाते तुम हो 
जब गीतों की खेती करती हूँ 
प्रेम सुधा बरसाते तुम हो