दर्द का बुत
चमक जाती है चांदनी फिर भी काली राते है
समझ बैठे हो जिसे तुम साँसे जीवन की
लेकर कफ़न चादर सा औडाने को तैयार बैठे हैं
रह रह कर ठगती थी जमाने भर की खुशिया सब
उठते थे दुःख के जलजले किसी दिल के कोने से
पग बढ़ते थे मंजिल पर , रूक जाते थे कब्र पर
छलती रही मौत मुझे बहुरूपिये सी तमाम उम्र