मंगलवार, 8 नवंबर 2011

इन्तहा


इन्तहा

यूं तो थी छोटी सी  बात
दिल को दुखाती रही रात भर
रूह जैसे जुदा हुई जिस्म से
 आग दहकाती रही रात भर
चंदा ने पूछा सितारों ने पूछा ,
हर फूल डाली गगन ने भी पूछा
जबकि जानता था यह विश्व सारा
दिल ही में  छुपाती रही रात भर
पाया जिसे था बहुत दिन बाद
खुद  से छुपाती रही रात भर
जालिम थे लोग जालिम ज़माना
सबसे बचाती रही रात भर
हुई जब सहर और दिन का उजाला
पाया कि खुद  मरती रही रात भर
देखा ना जिस ने  तस्सुवर भी मेरा
कर याद उसको को रोती रही रात भर
बढ़ा और जब भी दीवाना पन यह
सफ़र फान्सलो का मिटाती रही
जीतेजी जिसने ना पूछा कभी था
दिया कब्र पर  जलाती रही रात