गहराई जीवन की
कुछ को हम समझ नहीं पाते ..और कुछ हमें समझ नहीं पाते........और इंसान अपने आप से लड़ता ,अपने आप को समझाता, सहलाता ,दुलराता अकेले ही तन्हाईओं के गर्त में गर्क हो जाता है .........और इंतज़ार करता है सदियों से जमी हुई बर्फ के पिघलने का ....वह बर्फ .जो धूप के झुंडो से डरती है और अँधेरे की तरफ लपकती है ....वह बर्फ जो दिन प्रति दिन और बर्फाती है ..वह बर्फ जो जरा सी उष्णा पा कर आंसू बहाती है और फिर अपने ही आंसूयों से घबरा कर ठंडक के चादर ओढ़ कर किसी कोने में दुबक जाती है ..फिर जम जाने के लिए ...
खत्म नहीं होता यातनायों का चक्र ..जीने की ललक कुछ गहरी हो जाती है ........बिम्ब और प्रतिबिम्ब झुठलाने लगते है ...आसपास का शोर आवाज़े लगने लगती है ........अपनी बर्फ की चादर हटा कर मन चुपके से बाहर झाँकने की कोशिश करता है......वसंत के फूल कभी कभी शिशिर के सूखे पते नज़र आते हैं तो फिर मुख मोड़ लेता है ....अनगिनत शंकाएं है ..किस किस को सुलझाए ..मन अपने ही भ्रम जाल में क्यों ना बैठा रह जाए .. कदम ठिठक जाते है ..गति अवरुद्ध हो जाती है ...हर एक कदम भारी जान पड़ता है ..रूक कर निहारता है ..पीछे मुड़ कर देखता है ..चिंतन करता है और फिर बदली हुई दिशा के ज्ञान को पा कर कदम उठा लेता है आगे बढ़ने के लिए.........यही जीवन की यात्रा है ...
विभिन्न धारायों के साथ भिन्न लोगो से मिलना होता है .
कुछ को हम समझ नहीं पाते ..और कुछ हमें समझ नहीं पाते........और इंसान अपने आप से लड़ता ,अपने आप को समझाता, सहलाता ,दुलराता अकेले ही तन्हाईओं के गर्त में गर्क हो जाता है .........और इंतज़ार करता है सदियों से जमी हुई बर्फ के पिघलने का ....वह बर्फ .जो धूप के झुंडो से डरती है और अँधेरे की तरफ लपकती है ....वह बर्फ जो दिन प्रति दिन और बर्फाती है ..वह बर्फ जो जरा सी उष्णा पा कर आंसू बहाती है और फिर अपने ही आंसूयों से घबरा कर ठंडक के चादर ओढ़ कर किसी कोने में दुबक जाती है ..फिर जम जाने के लिए ...
खत्म नहीं होता यातनायों का चक्र ..जीने की ललक कुछ गहरी हो जाती है ........बिम्ब और प्रतिबिम्ब झुठलाने लगते है ...आसपास का शोर आवाज़े लगने लगती है ........अपनी बर्फ की चादर हटा कर मन चुपके से बाहर झाँकने की कोशिश करता है......वसंत के फूल कभी कभी शिशिर के सूखे पते नज़र आते हैं तो फिर मुख मोड़ लेता है ....अनगिनत शंकाएं है ..किस किस को सुलझाए ..मन अपने ही भ्रम जाल में क्यों ना बैठा रह जाए .. कदम ठिठक जाते है ..गति अवरुद्ध हो जाती है ...हर एक कदम भारी जान पड़ता है ..रूक कर निहारता है ..पीछे मुड़ कर देखता है ..चिंतन करता है और फिर बदली हुई दिशा के ज्ञान को पा कर कदम उठा लेता है आगे बढ़ने के लिए.........यही जीवन की यात्रा है ...