मंगलवार, 15 नवंबर 2011

जीत तुम्हारी ही बस होगी

मेरी बेटी  के नाम ...

जीत तुम्हारी ही बस होगी

भीगी ओस के मोती जैसे
चम् चम् करते ज्योति जैसे
क्यों डरते हो निशा काल से
क्यों लड़ते हो अपने आप से
रत्न प्रकाशित मेधा वाले
स्वरण काल के हो उजियाले
बहो वक़्त के धारे जैसे
जीत तुम्हारी ही बस होगी
पग ठिठके तो थम मत जाओ
खा कर ठोकर गिर मत जाओ
स्वेद बहा है ,रक्त गिराओ
कनक तुम्हारी ही बस होगी
चलो चलो बस चलो चलो तुम
निश्चित  मंजिल पग धरो तुम
पढो ,बढ़ो और धार बनो तुम
अंत  तुम्हारी ही जय  होगी