मंगलवार, 8 नवंबर 2011

दोस्त और दर्द


दोस्त और दर्द

दर्द तो जीवन का हिस्सा है
बिना दर्द के भी कही कोई किस्सा है ?
खुश  हो अगर तुम जमाना तुम्हारा है
मिले दर्द जीवन में बस दोस्त हमारा है
सुना था कि दोस्त को दोस्त ही बनाता  है
रस्म जिंदगी की बस दोस्त ही निभाता है
करे लाख शिकवे शिकायत ज़माना
पीता हैं आंसू और दोस्त मुस्कुराता है
लेता बलाएँ तमाम उम्र भर की
स्वयं मिट कर भी वह  दोस्त को बनाता है
नज़र कर देता है खुशिया वह सारी
दर्द को भी हर्ष का मुलम्मा चढाता है
बस इसलिए नीरज को दर्द ही तो प्यारा है
सच के धरातल पर दोस्ती बिछाता है