गुरुवार, 17 नवंबर 2011

आ ही गई अब मेरी भी बारी

आ ही गई अब मेरी भी बारी

दुल्हन की तरह सजाया मुझे
कहारों ने काँधे उठाया मुझे
तरसती रही जिस पी के मिलन को
आज खुद वो लेने आया मुझे

रखा संभाले मुझे मेरे अपनों ने
बिताया था जीवन संग मेरे सपनो के
आज उन सब ने ठेंगा दिखाया मुझे
अकेले ही पी संग भिजवाया मुझे

बहुत नाज़ था जिस पंचतत्व  वदन पर
क्षण भर में खोया सा  पाया मुझे
धूं- धूं जला जब चन्दन चिता पर
अस्मित रश्मियों सा लुटाया मुझे

आनी है बारी एक दिन सभी की
जाना पड़ेगा ,तब जाना ही होगा
बजेगा ना ढोलक ,ना तबला सारंगी
अमर गीत आत्म का उच्चरित होगा

" आ ही गई अब मेरी भी बारी "