अधूरी यात्रा
देहरी पर आकर
सहसा आयी एक आवाज़
चौंका देती है
छू कर चली जाती है मन को
झकझोर जाती है तन को
और मैं
अवाक ,हताश , पकड़ने की कोशिश में
उसके पीछे दौड़ता हूँ नंगे पाँव
दूर तक अँधेरा है
जुगनू की मद्धम रौशनी चमकाती है
आवाज़ नेपथ्य से बुलाती है
मन ज्वाला मुखी सा फट
लावा उगलता है
गर्माता है, दहकाता है ,
तेज़ लपटों के साथ अंतस को
जलाता है
आवाज़ फिर गूंजती है
जिस्म में जान फूंकती है
और मैं फिर दौड़ पड़ता हूँ .
अपने गंतव्य की और ..
पूरी करने
एक अधूरी यात्रा ....
देहरी पर आकर
सहसा आयी एक आवाज़
चौंका देती है
छू कर चली जाती है मन को
झकझोर जाती है तन को
और मैं
अवाक ,हताश , पकड़ने की कोशिश में
उसके पीछे दौड़ता हूँ नंगे पाँव
दूर तक अँधेरा है
जुगनू की मद्धम रौशनी चमकाती है
आवाज़ नेपथ्य से बुलाती है
मन ज्वाला मुखी सा फट
लावा उगलता है
गर्माता है, दहकाता है ,
तेज़ लपटों के साथ अंतस को
जलाता है
आवाज़ फिर गूंजती है
जिस्म में जान फूंकती है
और मैं फिर दौड़ पड़ता हूँ .
अपने गंतव्य की और ..
पूरी करने
एक अधूरी यात्रा ....