मंगलवार, 8 नवंबर 2011

अवसाद की दवा


अवसाद की दवा

यह अवसादों की खेती है
दिन दिन जो बढती है
बीज अगर सड़ जाए
तो भी यह चढ़ती  है
कल्पना के झूले में
निष्कंटक झूल रही
मन ही मन में ना जाने
कितने  शूल चुन रही
मुस्कराहट लब पर जो
धोखा है नयनो का
चुभे नश्तर अंतस में
रक्त धार सींच रही
नाम दे कर भावों का
बलिवेदी पर चढाओ मत
सुकोमलांग प्राणों को
यूं यातना दिलाओ मत
हो तुम अपने ,यह मन
भी तो बस अपना है
निज अहम् की आड़ में
यूं चिता में जलाओ मत
बयार बही जब अवसादी
तुषार पात का घात हुआ  
पीडाओ के चक्रव्यूह में
मन त्राहि त्राहि मान  हुआ
बस बोल एक प्यार का
जो मिश्री कानो में घोल दे
बस श्वास एक प्यार का
जो मृत में प्राण फूँक दे
शत्रु है अवसादों में
प्यारे का प्यारा बोल
नस नस में करे  सिंचित
प्रेम पीयूष मधुर घोल