बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

Aasavari

आसावरी
गुनगुनाओ राग अब आसावरी
प्रात बेला में न लसत बिहाग री
मूँद कर निज नयन तारे सो गए
ख़तम है अब गहन तिमिर विभावरी
त्रिविद मंद समीर पूरब से बहे
उदित प्राची से कनक रस गागरी
चहचहाते कीर कोकिल मोर पिक
चढ़ अटरिया बोलते खग कागरी
तरनी तालों में कमल दल खिल उठे
कह रहे कली से भ्रमर दल जाग री
भाल बिंदिया नयन में कजरा रचाओ
लाल सिंदूर से सजाओ मांग री
पेट पर रख पैर सोये ना कोई
युग युगों के बाद जागे भाग री
प्यार की सरिता बही उर शैल से
बुझा रही है विषमता की आग री