शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

Tum se acchi tumhaari yaad

तुम से अच्छी तुम्हारी  याद

जब भी आती याद तुम्हारी
गहरा जाती अधरों पर मुस्कान
शीतल करती मनस तपन को
मिट जाती सारी थकान
शाम ढले सूरज की लाली
लगती उषा की अरुणिम भोर
रजनी के तम की चादर काली
याद की टिम-टिम में ढूंढे छोर
तुमसे अच्छी याद तुम्हारी
ना लड़े ना रूठे ना बिगड़े कभी
तेज हवा में खुशबू जैसी
हर लम्हे को जिन्दा रखती  रही