मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

basti ke log

बस्ती के लोग

क्या जाने बस्ती के लोग
कैसे शमा जली रात भर
दर्द बहे जैसे पिघले मोम
पिघल पिघल कर जली वर्तिका
जखम  सरीखा जम गया मोम
रिसता रहा ज़ख्म रात भर
कैसे सहे दर्द-ए- वियोग
क्या जाने बस्ती के लोग