सहना पड़ता है दर्द यहाँ सब को अपने हिस्से का
डूबा करता हूँ जब भी पीड़ा के बहते दरिया में
बह जाती है सारी आशा विकल वेदना के प्रांगन में
उच्चरित होती है सदा सर्वदा अपनी पीड़ा की कोरी कथा
कोस कोस नियति को मानव शांत करता है अपनी व्यथा
जीवन है सुख दुःख का संगम ऐसा सब ने बतलाया था
फिर भी ना जाने क्यों इस तथ्य को आत्म-साध ना कर पाया था
क्यों बेचैन हुआ फिरता है प्राणी जीवन में झरते दुखों से
सहना पड़ता है दर्द यहाँ सबको अपने अपने हिस्से का