मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

iltiza

इल्तिजा
ना देना फिर कभी यूं मेरे दरवाज़े पे तुम दस्तक
तड़प कर निकलेगी आह हम  से ना संभाली जायेगी
तन्हाईओं का  यह गश्त हम तो सह ही जायेंगे
तेरी रुस्वाईओ की पीड़ा ना हम  से झेली जायेगी
जुस्तजू की बहुत  हम ने तुम से मिलने की यूं  उम्र भर
आरज़ू तुमसे मिलने की अब हम को ता उम्र तडपाये गी