इल्तिजा
ना देना फिर कभी यूं मेरे दरवाज़े पे तुम दस्तक
तड़प कर निकलेगी आह हम से ना संभाली जायेगी
तन्हाईओं का यह गश्त हम तो सह ही जायेंगे
तेरी रुस्वाईओ की पीड़ा ना हम से झेली जायेगी
जुस्तजू की बहुत हम ने तुम से मिलने की यूं उम्र भर
आरज़ू तुमसे मिलने की अब हम को ता उम्र तडपाये गी