सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

Maut aur jeevan

मौत और जीवन

भर लेती मौत मुझे  आज अपने अंक में
याँ यूं कहो कि, बस छू कर मुझे चली गई
 सोचूँ ,पथ से भटक गई थी  क्या ?
याँ फिर अपनी मंजिल से बिछड़ गई
जितना आसान लगता है उन्हें मरना यहाँ
शायद उससे भी मुश्किल है यूं मौत के साए  से गुजरना
भयावह चीखों और चीत्कारों के समक्ष
संघर्ष जीवन का लगा बड़ा  ही सहज , सुहावना
संघर्षों में छुपा हुआ है जीवन का संविधान
अमृत समझ कर करता हूँ मैं इस विष का पान
मन्त्र मौत का तज दो इस में ही है तेरी शान
संघर्ष थमा तो होगा मृत जीते  हुए  भी यह इंसान