एक संस्मरण
उस दिन ऑफिस में छोटी दिवाली के दिन दिवाली पूजा का आयोजन किया जा रहा था. सारे कर्मियों का उत्साहह पूरे जोर पर था. हर कोई त्यौहार मनाने के मूड में था. काम करने में शायद ही किसी का मन लग रहा हो. वह भी त्यौहार मनाने के शौक में डूबी हुई थी.तभी उसके के अधिकारी ने उसके काम में कुछ भूल सुधार करने के सलाह देते हुए कुछ पेपर उसे वापिस कर दिए.लकिन अपने पेपर्स में कोई भी त्रुटि ना मिल पाने के कारण वह उस पेपर को लाकर पुनह अपने अधिकारी के पास गयी और बोला कि यह सब ठीक है. "सब ठीक है जाओ जा कर सी ऍम डी से हस्ताक्षर करवा लायो " ऐसा अधिकारी ने कहा!
अधिकारी से ऐसे सुनते ही उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया. सिनिअर से गुस्सा करना व्यर्थ होता है. बेबस सी हो कर अधिकारी के कक्ष से बाहर आ गयी और वे पेपर्स सी ऍम डी के सक्रेट्री को देदिए . बड़ी छोटी सी बात थी. लकिन उसके का लिए बड़ी ही असहज और असहनीय थी. अपने आप को सयंत नहीं कर पाई. दिल का गुबार आँखों से बह कर निकल जाना चाहता था लेकिन आंसू आँखों के कोरों पर आ कर थम जाते थे . दिल के भाव कोई जान ना पाए इस लिए ओंठो पर एक मुस्कान की लकीर खींचने की बराबर कोशिश हो रही थी.
इतने में दफ्तर के सब लोग पूजा के लिए नीचे प्रांगन में एकत्रित होने लगे और दिवाली पूजा आरम्भ हो गयी. अपनी भावनायों के उद्द्वेग को शांत करने की नाकाम कोशिश उसे पूजा में शामिल होने से रोकती रही. हर कोई उसे नीचे पूजा में शामिल होने के लिए बुला रहा था .
किसी तरह अपने आप को सयंत करके कुछ समय के बाद वह वह अपने प्रतिबिम्ब को दर्पण में निहार कर आश्वस्त हो कर कि अब चेहरे से कोई भी भाव नहीं पढ़ पाए गा वह पूजा में शामिल हुई . आरती शुरू हो चुकी थी. लेकिन अब भी वह मानसिक रूप से वहां शामिल नहीं हुई थी. मन तो आंतरिक उद्द्वेग को रोकने क़ी कोशिश में लगा था.अचानक कोई उसके पास आकर खड़ा हो गया और धीरे से कान में कहा जाओ आरती लो और आरती की तरफ साथ साथ कदम बढाने लगा. जिस मानसिक उद्वेग को शांत करने के लिए वह पिछले एक घंटे से नाकामयाब कोशिश कर रही थी वह एक ही पल में शांत हो गया. यह वही अधिकारी था जिसके व्यवहार ने उसे कुछ समय पहले व्यथित कर दिया था.मन उस अधिकारी के लिए श्रद्धा और प्यार से भर गया और सोचने लगी कि जब और कोई उसके चेहरे को भी ना पढ़ पाया तो यह व्यक्ति उसके मन के भाव को कैसे पढ़ सका.
सच हम सब दोहरे माप-दंड में जीते हैं . इंसान व्यक्तिगत रूप में बहुत अच्छा होता है लेकिन हम दफ्तर में कई बार अधिकारी के आवरण में लिपटे उस इंसान के करीब नहीं पहुँच पाते और उसे नहीं पहचान पाते.आज दफ्तर छोड़ने के बाद भी वह शख्स उसका एक बहुत प्यारा दोस्त और उसके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है.