एक कठिन परीक्षा और सही
गम की काली रात भयावनी
क्रंदन करती पूर्णकाल
अश्रुपूरित नयनावलियों के
अंजन धोती बारम्बार
तेवर बदले जगवालों ने
किन्तु ना बदली मस्तक धार
जब तुम ने ही लिख डाला मस्तक
अपने स्वर्णिम हाथों से
श्रम कुठार ले कर चल दूंगा
ना लूँगा दीक्षा और कहीं
एक कठिन परीक्षा और सही
है मुझे भरोसा निज स्वेद का
व्यर्थ ना यूं गिरने दूंगा
हर एक बूँद पर स्वर्ण उगेगा
सत्य भागीरथ व्रत लूँगा
तुम जो कर सकते हो वह कर लो
है मुझ को स्वीकार चुनौती
अपने अस्त्र ,शस्त्र और बल की
तुम करो समीक्षा और सही
एक कठिन परीक्षा और सही