एक दीप मेरा जलने दो
शैशव की भोली रातों में
जाने कितने ख्वाब बुने थे
इन ख़्वाबों को अब सजने दो
एक दीप मेरा जलने दो
हुआ भ्रमित यूं पथ से भटका
श्वास श्वास में अंकुश अटका
मंजिल पर अब पग धरने दो
एक दीप मेरा जलने दो
हूँ साथ-साथ पर साथ की चाहत
युग-युग के इस एकाकी पन को
चाहत का स्पर्श मात्र करने दो
एक दीप मेरा जलने दो