वक़्त की महत्ता
वक़्त की फैली लम्बी चादर
कटती है जब धीरे धीरे
रेशे जैसा हर एक पल
फटता है तब धीरे धीरे
ज्ञान नहीं होता तब हम को
टूट रहे पल के रेशों का
बना देते सन्दर्भ बिगड़ते
सिहं तुला कन्या मेषों का
पकड़ नहीं पाते हम तब
तार तार से वक़्त के धागे
पीछे रह जाते तब दौड़ में
चाहे कितना भी जोर से भागें
रह जाती जब चादर आधी
और ना तन ढकने को काफ़ी
होती है तब खींचा-तानी
ना तुमने कही ना मैंने मानी
चादर वक़्त की ना फटने पाए
पल के रेशे ना टूटें जाए
आने वाले हर एक पल में
आओ यह संकल्प दोहरायें
शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
nav varsh mangalmay ho
नव वर्ष मंगल मय हो
हर सुबह आकर सरगम बनाये नयी
मीठी तान गा कर रात सुलाए कोई
पूनम सा दिन हो महकती शाम हो
नियामतो की बख्शीश आठों याम हो
इरादे बुलंद हों हौंसलें बुलंद हो
साथ हो अपनों का उड़ान स्वछंद हो
पंख अब फैलाओगे , दूर उड़ जाओगे
क्षितिज की सीमा हो आकाश अनंत हो
सृजन हो नव सपनों का आने वाले इस कल में
सपने हो साकार सभी ,आने वाले हर पल में
नूतन आशा ,नूतन अभिलाषा और बढे नव हर्ष
नव रंग का मिश्रण हो जीवन , मंगल मय हो नव वर्ष
हर सुबह आकर सरगम बनाये नयी
मीठी तान गा कर रात सुलाए कोई
पूनम सा दिन हो महकती शाम हो
नियामतो की बख्शीश आठों याम हो
इरादे बुलंद हों हौंसलें बुलंद हो
साथ हो अपनों का उड़ान स्वछंद हो
पंख अब फैलाओगे , दूर उड़ जाओगे
क्षितिज की सीमा हो आकाश अनंत हो
सृजन हो नव सपनों का आने वाले इस कल में
सपने हो साकार सभी ,आने वाले हर पल में
नूतन आशा ,नूतन अभिलाषा और बढे नव हर्ष
नव रंग का मिश्रण हो जीवन , मंगल मय हो नव वर्ष
do premi
दो प्रेमी
दोनों ही पागल प्रेमी थे
संग वक्त गुजारा करते थे
जीवन के बदरंग पन्नो पर
रंग उतारा करते थे
संध्या की काली घिरने से
उषा की लाली चढ़ने तक
बिछी रेत की चादर पर
कुछ शब्द उभारा करते थे
सागर की बहती लहरों में
बनते -, मिटते थे रोज़ लेख
जीवन के बहते दरिया में
पर बदल ना पाए भाग्य रेख
दुनिया की बहती भाग-दौड़ में
साथ हमेशा से छूट गये
नाजुक मन से दोनों थे
दिल कांच की जैसे टूट गये
दोनों ही पागल प्रेमी थे
संग वक्त गुजारा करते थे
जीवन के बदरंग पन्नो पर
रंग उतारा करते थे
संध्या की काली घिरने से
उषा की लाली चढ़ने तक
बिछी रेत की चादर पर
कुछ शब्द उभारा करते थे
सागर की बहती लहरों में
बनते -, मिटते थे रोज़ लेख
जीवन के बहते दरिया में
पर बदल ना पाए भाग्य रेख
दुनिया की बहती भाग-दौड़ में
साथ हमेशा से छूट गये
नाजुक मन से दोनों थे
दिल कांच की जैसे टूट गये
khwahish
ख्वाहिश
खतों -खितावत से ना मिटती है तेरे दीदार की ख्वाहिश
जी चाहता है कि अब तुझ को आगोश में भर लें
और पी लें तेरी इन झुकी मस्त निगाहों के प्याले
बिन छुए मय को , खुद अपने को मदहोश कर लें
वादे पे तेरे हम सब्र किये जाते हैं ऐ साकी
डरते है कि कही तू वादा फरामोश ना कर ले
सजदे में झुका देंगे सिर अपना तेरी मोहब्बत के आगे
याँ फिर वजूद को हम अपने फ़रोश ही कर लें
खतों -खितावत से ना मिटती है तेरे दीदार की ख्वाहिश
जी चाहता है कि अब तुझ को आगोश में भर लें
और पी लें तेरी इन झुकी मस्त निगाहों के प्याले
बिन छुए मय को , खुद अपने को मदहोश कर लें
वादे पे तेरे हम सब्र किये जाते हैं ऐ साकी
डरते है कि कही तू वादा फरामोश ना कर ले
सजदे में झुका देंगे सिर अपना तेरी मोहब्बत के आगे
याँ फिर वजूद को हम अपने फ़रोश ही कर लें
बुधवार, 29 दिसंबर 2010
mohabbat
मोहब्बत
क्यों ना हो गुमान यूं अपनी मोहब्बत का ऐ दोस्त
मोहब्बत करने वाले ही खाकसार हुआ करते है
यह हकीकत है कि जिसने भी की अकीदत यहाँ
जमाने भर के पीकर गम भी आबाद हुआ करते हैं
कभी ख्वाब में भी ना गुज़रे पल एक भी जुदाई का
जुदा हो भी जाए तो भी मोहब्बत किया करते हैं
मोहब्बत चीज़ क्या है यह तुम उनसे पूछो ए दोस्त
जो दफ़न हो जाने के बाद भी मोहब्बत से जिया करते हैं
क्यों ना हो गुमान यूं अपनी मोहब्बत का ऐ दोस्त
मोहब्बत करने वाले ही खाकसार हुआ करते है
यह हकीकत है कि जिसने भी की अकीदत यहाँ
जमाने भर के पीकर गम भी आबाद हुआ करते हैं
कभी ख्वाब में भी ना गुज़रे पल एक भी जुदाई का
जुदा हो भी जाए तो भी मोहब्बत किया करते हैं
मोहब्बत चीज़ क्या है यह तुम उनसे पूछो ए दोस्त
जो दफ़न हो जाने के बाद भी मोहब्बत से जिया करते हैं
मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
geet tumhare hain
गीत तुम्हारे है
कैसे कह दूं कि
मेरे गीतों में तुम ही बसे हो
कैसे कह दूं कि हर एक
हर्फ़ में अक्स है तेरा
कैसे कह दूं कि हर एक
धुन में साज है तेरा
तुम से ही तो गीत जवान हुए है
गीत उसाँसे थे अब तक जो मैंने पाले
गीत प्यासे थे अब तक जो मैंने रखे संभाले
हर गीत की चाहत में तुम चाहत बन कर आये
हर गीत की देहरी पर तुम आहट बन कर आये
यह गीत तुम्हारे है तुम से ही उपजे है
यह गीत वोह सारे हैं , करते तुम को सिजदे हैं
कैसे कह दूं कि
मेरे गीतों में तुम ही बसे हो
कैसे कह दूं कि हर एक
हर्फ़ में अक्स है तेरा
कैसे कह दूं कि हर एक
धुन में साज है तेरा
तुम से ही तो गीत जवान हुए है
गीत उसाँसे थे अब तक जो मैंने पाले
गीत प्यासे थे अब तक जो मैंने रखे संभाले
हर गीत की चाहत में तुम चाहत बन कर आये
हर गीत की देहरी पर तुम आहट बन कर आये
यह गीत तुम्हारे है तुम से ही उपजे है
यह गीत वोह सारे हैं , करते तुम को सिजदे हैं
tum aaye to jeevan badla
तुम आए तो जीवन बदला
एक आग धधकती थी सीने में
ना शोला बनी , ना बुझी कभी
एक चाह सी उठती थी मन में
ना दफ़न हुई, ना दर्द बनी
एक नाम उभरता था लब पर
जो सुना नहीं , ना कहा कभी
अहसासों का दरिया चुप था
अनुभव की लहर थी दबी दबी
जी तो रहे थे ,पर जिन्दा कब थे
साँसों की गति थी थमी थमी
तुम आये तो जीवन बदला
पतझर थी, जो बहार बनी
एक आग धधकती थी सीने में
ना शोला बनी , ना बुझी कभी
एक चाह सी उठती थी मन में
ना दफ़न हुई, ना दर्द बनी
एक नाम उभरता था लब पर
जो सुना नहीं , ना कहा कभी
अहसासों का दरिया चुप था
अनुभव की लहर थी दबी दबी
जी तो रहे थे ,पर जिन्दा कब थे
साँसों की गति थी थमी थमी
तुम आये तो जीवन बदला
पतझर थी, जो बहार बनी
yakeen
यकीन
कितना मिलते थे हम रोज़ ना जाने क्या हुआ
बिछड़ गए अचानक ,अक्सर सोचते है कि
नाम गर कभी आएगा जुबान पर मेरा
तो क्या संभाल लोगे जिगर अपना?
रूबरू जब कभी होगा मेरा साया तुमसे
तो कर पायगे अलग वजूद अपना?
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को दामन पकड़ कर बुलाना
ना बदला होगा मेरा वोह दामन झटक कर छुड़ाना
ना बदला होगा तेरा वोह नज़र से नज़र मिलाना
ना बदला होगा मेरा वोह तुम से नज़रे बचाना
बात बात पर चहकना , इतराना, और रूठ जाना
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को यूं बुलाना
बिछड़ने के बाद भी है यह मुझ को यकीं
हम तुम कही दूर नहीं, बस आस-पास है कहीं
कितना मिलते थे हम रोज़ ना जाने क्या हुआ
बिछड़ गए अचानक ,अक्सर सोचते है कि
नाम गर कभी आएगा जुबान पर मेरा
तो क्या संभाल लोगे जिगर अपना?
रूबरू जब कभी होगा मेरा साया तुमसे
तो कर पायगे अलग वजूद अपना?
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को दामन पकड़ कर बुलाना
ना बदला होगा मेरा वोह दामन झटक कर छुड़ाना
ना बदला होगा तेरा वोह नज़र से नज़र मिलाना
ना बदला होगा मेरा वोह तुम से नज़रे बचाना
बात बात पर चहकना , इतराना, और रूठ जाना
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को यूं बुलाना
बिछड़ने के बाद भी है यह मुझ को यकीं
हम तुम कही दूर नहीं, बस आस-पास है कहीं
रविवार, 26 दिसंबर 2010
kitaaben
किताबें
सब से अच्छा दोस्त है किताबें
न कुछ मांगती है
ना कुछ शिकायत करती हैं
अपने चाहने वालो को हमेशा देती है
मुंह फेर लो रूठती नहीं
पास चले जायो तो दुत्कारती नहीं
अज्ञानी का उपहास नहीं उड़ाती
बस हर दम अपने सब कुछ न्योछावर करने को उद्यत
सब से अच्छा दोस्त है किताबें
न कुछ मांगती है
ना कुछ शिकायत करती हैं
अपने चाहने वालो को हमेशा देती है
मुंह फेर लो रूठती नहीं
पास चले जायो तो दुत्कारती नहीं
अज्ञानी का उपहास नहीं उड़ाती
बस हर दम अपने सब कुछ न्योछावर करने को उद्यत
शनिवार, 25 दिसंबर 2010
Aasha ka aagman
आशा का आगमन
आने वाली हर सुबह को सलाम
उठने वाली हर लहर को सलाम
बहती पवन के कण-कण को सलाम
धरा के चक्र को सलाम
आती ऋतुओं का स्वागत है
हर नई कोंपल का सत्कार
टिम टिम तारे का स्वागत है
दूज के चाँद का सत्कार
आशा की चादर को ओढ़े
हर एक पल को नमस्कार
जीवन को रौशन करने वाले
हर एक दीप का है सत्कार
गहन निराशा की खोह से
प्रस्स्फुटित हुई आशा की किरने
प्राची, जल,थल,नभ,पाताल के
जर्रे- जर्रे को सलाम
आने वाली हर सुबह को सलाम
उठने वाली हर लहर को सलाम
बहती पवन के कण-कण को सलाम
धरा के चक्र को सलाम
आती ऋतुओं का स्वागत है
हर नई कोंपल का सत्कार
टिम टिम तारे का स्वागत है
दूज के चाँद का सत्कार
आशा की चादर को ओढ़े
हर एक पल को नमस्कार
जीवन को रौशन करने वाले
हर एक दीप का है सत्कार
गहन निराशा की खोह से
प्रस्स्फुटित हुई आशा की किरने
प्राची, जल,थल,नभ,पाताल के
जर्रे- जर्रे को सलाम
phool sa vyktitv
फूल सा व्यक्तित्व
फूल सा व्यक्तित्व है उसका
करता है आकर्षित सबको
एक शूल चुबता है तुमको
तो क्या खुशबू खो देगा ?
फूल तो आखिर फूल रहे गा
शीश चढाओ या ठुकराओ
कोमलता में सर्वोपरि है
चाहे कितने भी शूल गिनाओ
तुम चाहे इनका करो ना सिंचन
यह तो महक फैलाएगा
कर लो कितना भी जीवन मंथन
ऐसा सौरभ कही ना मिल पायेगा
फूल सा व्यक्तित्व है उसका
करता है आकर्षित सबको
एक शूल चुबता है तुमको
तो क्या खुशबू खो देगा ?
फूल तो आखिर फूल रहे गा
शीश चढाओ या ठुकराओ
कोमलता में सर्वोपरि है
चाहे कितने भी शूल गिनाओ
तुम चाहे इनका करो ना सिंचन
यह तो महक फैलाएगा
कर लो कितना भी जीवन मंथन
ऐसा सौरभ कही ना मिल पायेगा
jaane wala chala gya
जाने वाला चला गया
जाने वाला चला गया
हर पल को चुरा कर चला गया
यादो में गुज़रे अब हर पल
हर पल को रुला कर चला गया
किया था उसको रुखसत मैंने
कुछ मन से कुछ बेमन से
जाने कौन ,यहाँ क्या था उसका
सारे घर को लेकर चला गया
मिलेगा कभी कहीं किसी रोज़
पूछेंगे उससे किस्सा- ए- दिल
कैसे काटे है उसने भी दिन
दिल यहाँ छोड़ के चला गया
जाने वाला चला गया
हर पल को चुरा कर चला गया
यादो में गुज़रे अब हर पल
हर पल को रुला कर चला गया
किया था उसको रुखसत मैंने
कुछ मन से कुछ बेमन से
जाने कौन ,यहाँ क्या था उसका
सारे घर को लेकर चला गया
मिलेगा कभी कहीं किसी रोज़
पूछेंगे उससे किस्सा- ए- दिल
कैसे काटे है उसने भी दिन
दिल यहाँ छोड़ के चला गया
jaadaa
जाड़ा ( सर्दी का मौसम )
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
धुंध और कोहरे से लिपटा
मद्धम हो सूरज भी सिमटा
गर्माहट हर पल तरसता
दिन भर बर्फाना ठिठुरता
रात को आग का देता भाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
कामकाज हो जाता सारा ठप्प
चाय के साथ बस होता गपशप
लम्बे कोट पहन सडको पर
हिम से खेले सब वृद्ध युवा जन
बड़े उत्साह का एक नगाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
हम भी तब थे छोटे छोटे
पहन गरम दस्ताने , मौजे
माँ की नज़र बचा कर के
चढ़ जाते घर के परकोटे
देवदार से लम्बे हो कर
छूते सूरज का चौबारा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
धुंध और कोहरे से लिपटा
मद्धम हो सूरज भी सिमटा
गर्माहट हर पल तरसता
दिन भर बर्फाना ठिठुरता
रात को आग का देता भाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
कामकाज हो जाता सारा ठप्प
चाय के साथ बस होता गपशप
लम्बे कोट पहन सडको पर
हिम से खेले सब वृद्ध युवा जन
बड़े उत्साह का एक नगाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
हम भी तब थे छोटे छोटे
पहन गरम दस्ताने , मौजे
माँ की नज़र बचा कर के
चढ़ जाते घर के परकोटे
देवदार से लम्बे हो कर
छूते सूरज का चौबारा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
virh
विरह
जब पूनम की ज्योति से धुल कर
रजनी आँचल फैलाती है
जब पवन सुरीली बाँसुरिया
तरु पल्लव से बजवाती है
प्रीत पिया के स्निग्ध स्पर्श की
चाहत को अकुलाती है
विहरन वेन गीत मिलन के
रात रात भर गाती है
ऐसे में प्रेमी विलग मन
दर्द बटोरा करते हैं
शबनम के नन्हे कतरों से ,
शोलों को ठंडा करतें हैं
जब पूनम की ज्योति से धुल कर
रजनी आँचल फैलाती है
जब पवन सुरीली बाँसुरिया
तरु पल्लव से बजवाती है
प्रीत पिया के स्निग्ध स्पर्श की
चाहत को अकुलाती है
विहरन वेन गीत मिलन के
रात रात भर गाती है
ऐसे में प्रेमी विलग मन
दर्द बटोरा करते हैं
शबनम के नन्हे कतरों से ,
शोलों को ठंडा करतें हैं
गुरुवार, 23 दिसंबर 2010
vaade to toota karte hain
वादे तो टूटा करते हैं
वादों की बात क्या करते हो
वादे टूटा ही करते है
कच्चे सपनो के महलों जैसे
टूट के बिखरा करते हैं
बिखरी किरमिच को चुनते समय
जब कंकर चुभते हाथों में
तब दर्द उभरता सीने में
और अश्रु बहते आँखों से
स्वर पीड़ा के मुखरित होते
जब दर्द पिघलता अनायास
दिल तो मोम है पिघले गा ही
टीस उठते है तब पाषण
वादों की बात क्या करते हो
वादे टूटा ही करते है
कच्चे सपनो के महलों जैसे
टूट के बिखरा करते हैं
बिखरी किरमिच को चुनते समय
जब कंकर चुभते हाथों में
तब दर्द उभरता सीने में
और अश्रु बहते आँखों से
स्वर पीड़ा के मुखरित होते
जब दर्द पिघलता अनायास
दिल तो मोम है पिघले गा ही
टीस उठते है तब पाषण
बुधवार, 22 दिसंबर 2010
baat ki baat
बात की बात
बातों बातों में बात चली
बात की बात को लगी भली
फिर बातें बातों में होने लगी
कुछ बातें रह गयी अनकही
सोचा मिलें तो बात करें
बात बात में सवाल करें
मुलाकात की बात हुई
बात करें जब रात हुई
पल में बीती लम्बी रात
बात बात में हुई ना बात
दिल की दिल में रह गई बात
अनबोली ना समझी बात
बातों बातों में बात चली
बात की बात को लगी भली
फिर बातें बातों में होने लगी
कुछ बातें रह गयी अनकही
सोचा मिलें तो बात करें
बात बात में सवाल करें
मुलाकात की बात हुई
बात करें जब रात हुई
पल में बीती लम्बी रात
बात बात में हुई ना बात
दिल की दिल में रह गई बात
अनबोली ना समझी बात
रविवार, 19 दिसंबर 2010
mamta ki janjeer
ममता की जंजीर
देख कर जुल्मो-सितम इस जगत के
उठते है बवंडर तब इस शांत मन मे
मन का हारिल विरक्त हो तब दूर नभ मे
उड़ कर कही स्वयं से दूर जाना चाहता है
कैद कर नहीं रख पाती उसे सोने की दीवार
रोक नहीं पाती किसी के चाहत के दीदार
बहला नहीं पाती उसे कोई भी तक़रीर
सहला नहीं जाती किसी के प्यार की तस्वीर
टूट जाते है सब बंधन बस एक ही पल में
बाँध पाती है उसे तो बस ममता की जंजीर
देख कर जुल्मो-सितम इस जगत के
उठते है बवंडर तब इस शांत मन मे
मन का हारिल विरक्त हो तब दूर नभ मे
उड़ कर कही स्वयं से दूर जाना चाहता है
कैद कर नहीं रख पाती उसे सोने की दीवार
रोक नहीं पाती किसी के चाहत के दीदार
बहला नहीं पाती उसे कोई भी तक़रीर
सहला नहीं जाती किसी के प्यार की तस्वीर
टूट जाते है सब बंधन बस एक ही पल में
बाँध पाती है उसे तो बस ममता की जंजीर
mujhe tum yaad karna
मुझे तुम याद करना
जब भी मुश्किल में तुम आओ
मुझे तुम याद करना
स्थिति जब भी प्रतिकूल पाओ
मुझे तुम याद करना
बन कर हल हर प्रश्न का
बन कर आऊँ गा मैं
बन कर ढाल हर मुसीबत के
समक्ष खड़ा हो जाऊंगा मैं
तुम बन कर रहो 'नीरज'
इस जीवन के तरन ताल में
भंवर उठे कभी जब भी
तो बस जान लो इतना
झेलने को तूफ़ान
चट्टान बन जाऊं गा मैं
यह मत सोचो कि रिश्ता
मेरा तुम से चिर पुराना है
रहे है अजनबी ता उम्र
नहीं कोई फ़साना है
एक तार स्नेह का
मुझ को तुम से जोड़ता है
एक दीप तम का
जो हर दिशा को मोड़ता है
इसलिए बस बार इक
मैं बोलता हूँ
तुम तक पहुंची हर बला
को तोलता हूँ
और फिर कहता यही हूँ कि
डगर हो अगर अनजान तो
मुझे तुम याद करना
लगे जब कठिन पंथ और काज
मुझे तुम याद करना
जब भी मुश्किल में तुम आओ
मुझे तुम याद करना
स्थिति जब भी प्रतिकूल पाओ
मुझे तुम याद करना
बन कर हल हर प्रश्न का
बन कर आऊँ गा मैं
बन कर ढाल हर मुसीबत के
समक्ष खड़ा हो जाऊंगा मैं
तुम बन कर रहो 'नीरज'
इस जीवन के तरन ताल में
भंवर उठे कभी जब भी
तो बस जान लो इतना
झेलने को तूफ़ान
चट्टान बन जाऊं गा मैं
यह मत सोचो कि रिश्ता
मेरा तुम से चिर पुराना है
रहे है अजनबी ता उम्र
नहीं कोई फ़साना है
एक तार स्नेह का
मुझ को तुम से जोड़ता है
एक दीप तम का
जो हर दिशा को मोड़ता है
इसलिए बस बार इक
मैं बोलता हूँ
तुम तक पहुंची हर बला
को तोलता हूँ
और फिर कहता यही हूँ कि
डगर हो अगर अनजान तो
मुझे तुम याद करना
लगे जब कठिन पंथ और काज
मुझे तुम याद करना
शनिवार, 18 दिसंबर 2010
vishwas pyaar ka
विश्वास प्यार का
लेख हमने जो लिखे जीवन के पन्नो पर
दावा है मेरा कि तुम वह सब मिटा ना पायोगे
करोगे जितना भी जतन हमसे दूर जाने का
उतना ज्यादा तुम हमे पास अपने पायोगे
लाख चाहे बंद करो तुम कान अपने
गीत मेरे भाव के दिल में गुंजाते पायोगे
तड़प उठोगे स्वयं को देख कर तन्हा
"प्यार कहते है किसे" तब स्वयं ही जान जायोगे
लेख हमने जो लिखे जीवन के पन्नो पर
दावा है मेरा कि तुम वह सब मिटा ना पायोगे
करोगे जितना भी जतन हमसे दूर जाने का
उतना ज्यादा तुम हमे पास अपने पायोगे
लाख चाहे बंद करो तुम कान अपने
गीत मेरे भाव के दिल में गुंजाते पायोगे
तड़प उठोगे स्वयं को देख कर तन्हा
"प्यार कहते है किसे" तब स्वयं ही जान जायोगे
dooriyaa
दूरियां
सृजन की तूलिका ने फिर गमक की तान छेड़ दी.
विरह की वेदना ने मिलन की हर आस भेद दी
उठे जब भी कदम तुम्हारी तरफ तुमसे मिलने को
इस जग के लोगो ने इड़ा की झूठी शान घेर दी
बढे अब फांसले कुछ इस तरह दरमियाँ दोनों के
कि साथ रह कर भी प्रिया अजानी छाप बन गयी
ना समझे थे ना समझोगे तुम ऐ जहां वालो
दूरी बीच दोनों की तुम्हारी नज़र की माप बन गयी
.
सृजन की तूलिका ने फिर गमक की तान छेड़ दी.
विरह की वेदना ने मिलन की हर आस भेद दी
उठे जब भी कदम तुम्हारी तरफ तुमसे मिलने को
इस जग के लोगो ने इड़ा की झूठी शान घेर दी
बढे अब फांसले कुछ इस तरह दरमियाँ दोनों के
कि साथ रह कर भी प्रिया अजानी छाप बन गयी
ना समझे थे ना समझोगे तुम ऐ जहां वालो
दूरी बीच दोनों की तुम्हारी नज़र की माप बन गयी
.
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010
muskaan meri samptti
मुस्कान मेरी सम्पत्ति
सूरज का उगना
चंदा का छुपना
तारों का टिमटिमाना
ऋतुओं का चक्र
धरती का यूं घूमना
और घुमाना
नन्हे बीज का अंकुरित होना
सागर का नन्ही बूंदे बन कर
यूं उड़ जाना
बादल बन कर धरती पर फिर बरस जाना
क्या यह सब प्रक्रिया है ?
एक रहस्य अनदेखा, अनबोला
जिसको हर मानव ने झेला
पाला पोसा और महसूसा
किया स्वीकार हर एक अजूबा
है असंभव बदलना स्वभाव नियति का
पर है स्वयं दाता वह मुस्कान अपनी का
सूरज का उगना
चंदा का छुपना
तारों का टिमटिमाना
ऋतुओं का चक्र
धरती का यूं घूमना
और घुमाना
नन्हे बीज का अंकुरित होना
सागर का नन्ही बूंदे बन कर
यूं उड़ जाना
बादल बन कर धरती पर फिर बरस जाना
क्या यह सब प्रक्रिया है ?
एक रहस्य अनदेखा, अनबोला
जिसको हर मानव ने झेला
पाला पोसा और महसूसा
किया स्वीकार हर एक अजूबा
है असंभव बदलना स्वभाव नियति का
पर है स्वयं दाता वह मुस्कान अपनी का
rahsya jeevan ka
रहस्य जीवन का
जीवन को करीब से देखने की
हर कोशिश
मुझे जीवन से हर बार
कोसों दूर ले जाती है
और छोड़ देती है
एक ऐसी ऊँचाई पर
जहां से हर आदमी बौना नज़र आता है
सुख-दुःख ख़ुशी-गम के आवरण
झीने जान पड़ते हैं
मन को टटोलती हूँ
श्वसन को बटोरती हूँ
और फिर सोचती हूँ
जीवन एक रहस्य है-
इसे राज ही रहने दें.
जैसे सब बहते हैं
वैसे ही बहने दें.
जीवन को करीब से देखने की
हर कोशिश
मुझे जीवन से हर बार
कोसों दूर ले जाती है
और छोड़ देती है
एक ऐसी ऊँचाई पर
जहां से हर आदमी बौना नज़र आता है
सुख-दुःख ख़ुशी-गम के आवरण
झीने जान पड़ते हैं
मन को टटोलती हूँ
श्वसन को बटोरती हूँ
और फिर सोचती हूँ
जीवन एक रहस्य है-
इसे राज ही रहने दें.
जैसे सब बहते हैं
वैसे ही बहने दें.
Doshi kaun
दोषी कौन?
वृक्ष पर लटका पत्ता
पीला हुआ, झरा
और धरती पर गिरा
हवा के झोंको के साथ
इधर उधर उड़ा
और कही दूर जा पडा
विदम्भ्ना कहो, या कहो स्वभाव
दोष किसे दें ?
वृक्ष को!
जो पत्तों को बांध कर
रख नहीं पाया
हवा को!
जिसने पत्तों को
इधर-उधर उड़ाया
यां फिर पत्ते को!
जो जीवन भर
साथ दे ना पाया
जीवन में बहुत सारे सवाल हैं
जवाब कहीं नहीं है
बस कहीं एक समझौता है
कहीं कहीं ख़ुशी से
और
कहीं मन में मलाल है
वृक्ष पर लटका पत्ता
पीला हुआ, झरा
और धरती पर गिरा
हवा के झोंको के साथ
इधर उधर उड़ा
और कही दूर जा पडा
विदम्भ्ना कहो, या कहो स्वभाव
दोष किसे दें ?
वृक्ष को!
जो पत्तों को बांध कर
रख नहीं पाया
हवा को!
जिसने पत्तों को
इधर-उधर उड़ाया
यां फिर पत्ते को!
जो जीवन भर
साथ दे ना पाया
जीवन में बहुत सारे सवाल हैं
जवाब कहीं नहीं है
बस कहीं एक समझौता है
कहीं कहीं ख़ुशी से
और
कहीं मन में मलाल है
Bargad Ka ped
बरगद का पेड़
गाँव के बाहर बरगद का पेड़
सर्दी गर्मी ,धूप और छाया
सदियों से वह सहता आया
बदलते हर मौसम की थपेड
हरा भरा वह वृक्ष सघन
गोद में जिसके बीता बचपन
संग में जिसके हुआ बड़ा
वह आज भी वहीं अडिग खड़ा
पल- पल करके बरसो बीते
घूमा जग भर रीते-रीते
प्रतिकूल स्तिथि से जब भी घबराया
बूढ़े बरगद ने साहस बंधाया
गिर कर चड़ना और चढ़ कर गिरना
जीवन की है एक एक कला
अंतिम चरण मंजिल पर धरना
जीवन सार है यही भला
गाँव के बाहर बरगद का पेड़
सर्दी गर्मी ,धूप और छाया
सदियों से वह सहता आया
बदलते हर मौसम की थपेड
हरा भरा वह वृक्ष सघन
गोद में जिसके बीता बचपन
संग में जिसके हुआ बड़ा
वह आज भी वहीं अडिग खड़ा
पल- पल करके बरसो बीते
घूमा जग भर रीते-रीते
प्रतिकूल स्तिथि से जब भी घबराया
बूढ़े बरगद ने साहस बंधाया
गिर कर चड़ना और चढ़ कर गिरना
जीवन की है एक एक कला
अंतिम चरण मंजिल पर धरना
जीवन सार है यही भला
yaachna
याचना
सौगंध तुम्हे सच कहना मुझसे
बात एक भी ना मन में रखना
जीवन की ढलती बेला में
कब तक पड़ेगा यूं सहना
मेरी अनसोयी रातों ने
तुमको भी तो जगाया होगा
मेरे दिल की आहों ने
तुम को भी तो तड़पाया होगा
अंतस में उमड़े दुःख के बादल
तुम को भी नम करते होंगे
नयनों से छलके पानी की गागर
कोरों को गीला करते होंगे
शून्य व्योम में भटक रहा हूँ
ना रह कर मौन निहारो मुझको
अनहत स्वर का भेद ना जानू
कुछ तो कहो, पुकारो मुझको
सौगंध तुम्हे सच कहना मुझसे
बात एक भी ना मन में रखना
जीवन की ढलती बेला में
कब तक पड़ेगा यूं सहना
मेरी अनसोयी रातों ने
तुमको भी तो जगाया होगा
मेरे दिल की आहों ने
तुम को भी तो तड़पाया होगा
अंतस में उमड़े दुःख के बादल
तुम को भी नम करते होंगे
नयनों से छलके पानी की गागर
कोरों को गीला करते होंगे
शून्य व्योम में भटक रहा हूँ
ना रह कर मौन निहारो मुझको
अनहत स्वर का भेद ना जानू
कुछ तो कहो, पुकारो मुझको
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
anubhav sparsh ka
अनुभव स्पर्श का
कोलाहल चंहु और
निस्तब्ध बना पुर जोर
मधुर शब्द मौन ना
सिहरन भरा स्पर्श्य
मंजुल मन अवश्य
व्यक्त हई कल्पना
जागे सोया अभिलाष
अभिनंदित उल्लास
कुहुक उठी वेदना
कोलाहल चंहु और
निस्तब्ध बना पुर जोर
मधुर शब्द मौन ना
सिहरन भरा स्पर्श्य
मंजुल मन अवश्य
व्यक्त हई कल्पना
जागे सोया अभिलाष
अभिनंदित उल्लास
कुहुक उठी वेदना
सदस्यता लें
संदेश (Atom)