गुरुवार, 25 अगस्त 2011

Apne thaakur se !

अपने ठाकुर से
ना देहरी पर शीश  झुके तो
ना मंदिर में दीप जले तो
ना अर्चन में पुष्प चढ़े तो
क्या तुम मुझ को ठुकरा दोगे ?
ना मैं तुम को भोग लगाऊ
ना मंदिर जा प्रसाद चडाऊ
ना मीरा बन कर करू याचना
ना गोपी बन कर तुम्हे रिझाऊ
चर्चा करते कर्म   योग की
उपमा देते योगी धर्म की
अब ना किया जो चिंतन तेरा
तो क्या मुझ को ठुकरा दोगे ?
वत्सल हो तुम यह जग जाहिर
कठिन परीक्षा लेने में माहिर
अवगुण अज्ञानी अनुतीर्ण हुआ तो
क्या  तुम मुझको ठुकरा दोगे ?
चलू उठ कर अब करूं साधना
जगत विदित तेरी आराधना
ठुकराओ या अपनाओ तुम
अविचलित हो करू  मन बांधना
स्वेद बहाऊँ गा कर्मों से
बिखरे मोती तुम चुन लेना
शीश धरो या पग धूलि बनाओ
उचित लगे पुरस्कृत कर देना