शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

ek kanteela jhaad

एक कंटीला झाड़
उगता है
मरुभूमि में
भीषण गर्मी में
तपती रेत
चहु और
नमी तरसती
पानी को
पर झाड़ कंटीला
बड़ा हठीला
मौसम से लड़ता
शुष्क धरा से
वारि बूंदों का
अवशोषण करता
हर अंधड़ को
जम कर सहता
और यह कहता
मैं झाड़ कंटीला
ना मेरा कबीला
पर अलबेला
मरता है
जब सारा मरुथल
जी जाता मैं '
पी कर हाला