एक कंटीला झाड़
उगता है
मरुभूमि में
भीषण गर्मी में
तपती रेत
चहु और
नमी तरसती
पानी को
पर झाड़ कंटीला
बड़ा हठीला
मौसम से लड़ता
शुष्क धरा से
वारि बूंदों का
अवशोषण करता
हर अंधड़ को
जम कर सहता
और यह कहता
मैं झाड़ कंटीला
ना मेरा कबीला
पर अलबेला
मरता है
जब सारा मरुथल
जी जाता मैं '
पी कर हाला
उगता है
मरुभूमि में
भीषण गर्मी में
तपती रेत
चहु और
नमी तरसती
पानी को
पर झाड़ कंटीला
बड़ा हठीला
मौसम से लड़ता
शुष्क धरा से
वारि बूंदों का
अवशोषण करता
हर अंधड़ को
जम कर सहता
और यह कहता
मैं झाड़ कंटीला
ना मेरा कबीला
पर अलबेला
मरता है
जब सारा मरुथल
जी जाता मैं '
पी कर हाला